Dec 14, 2014

हम अपनी ही सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं..

नहीं नहीं, मैं नहीं लगा सकता मेरा सर दुखता है, वैसे मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है लेकिन बस घुटन महसूस होती है, साइड का नहीं दिखता बड़ी दिक्कत होती है, मेरे बाल ख़राब हो जाते हैं यहाँ तक कि एक बार भी लगाओ तो झड़ने लगते हैं, सर पर इतना बड़ा बोझ लेकर नहीं चल सकती मैं, अरे ठीक है अब भाषण न दिया करो.
ये हैं कुछ बहाने, हेलमेट न लगाने के. फिर से पढ़िए ज़रा. सारे बहाने सिर्फ इसलिए हैं जिससे हेलमेट न लगाने को सही साबित किया जा सके और दूसरे को इसे न लगाने के कारण गिनाये जा सकें.
इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन ऑफ़ मोटर व्हीकल मेनुफेक्चर्स 2013 के आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया में दो पहिया वाहन बनाने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. हमारे देश में लगभग 15 मिलियन लोग दो पहिया वाहन चलाते हैं. नियमों के अनुसार इतने ही लोगों को हेलमेट भी लगाना चाहिए लेकिन वास्तव में हेलमेट लगाने वाले संख्या में कम हैं. कुछ लोग सिर्फ इसलिए हेलमेट लगाते हैं कि चालान न कट जाए. उनके लिए सुरक्षा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. पिछले दिनों सितम्बर में सरकार ने एक आदेश निकला जिसके तहत बिना हेलमेट वाले दुपहिया वहां और बिना सीट बेल्ट के कार चालको को पेट्रोल या डीजल नहीं दिया जायेगा. अगले दिन अख़बार में बिना हेलमेट और सीट बेल्ट के बहुत से लोग पेट्रोल लेते नज़र आये. उसके बाद से आज तक ले रहे हैं. उसके पहले सरकार ने महिलाओं और बच्चों के लिए भी हेलमेट पहनना अनिवार्य कर दिया. सरकार आदेश निकालकर ने अपना काम किया अच्छी बात है लेकिन यहाँ अखरने वाली बात ये है कि हमे इस तरह के आदेशों की ज़रुरत क्यों पढ़ती है बार बार. हमारे देश में कोई भी अच्छी आदत केवल क़ानून के डर से ही ही लोग अपनाते हैं. नियमों को मानने से अधिक उन्हें तोड़ने और बचने के लिए रसूख़ के इस्तेमाल पर अधिक ध्यान होता है.
एनसीआरबी के आंकड़ों के आधार पर बात करें तो 2013 में हर दिन सड़क दुर्घटना में 377 लोगों की जाने गयीं और 1287 लोग घायल हुए. गौर करने वाली बात ये है कि ये आंकड़ा आज भी जस का तस है. इसके पीछे की वजह केवल स्वयं की सुरक्षा के प्रति लापरवाही भरा रवैया है.
भारत में नए दो पहिया वाहन के रजिस्ट्रेशन के लिए हेलमेट की रसीद दिखाना अनिवार्य है. इसका अर्थ ये है कि हेलमेट मजबूरी में ही सही लेना तो पड़ता है लेकिन उसे लगाने की ज़हमत नहीं उठाना चाहते. इसके लिए उनके पास अपने अपने कारण हैं.  इसका अर्थ ये नहीं है कि कोई भी वाहन सवार हेलमेट नहीं लगाता है, हाँ उनकी संख्या न लगाने वालों से कम है.
ऑस्ट्रेलिया दुनिया का सबसे पहला देश है जिसने 1989 में साइकिल पर भी हेलमेट लगाने के लिए क़ानून लागू किया. और सही भी है कि साइकिल वाले भी बेमौत सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं. हमारे देश में फिलहाल इस तरह का कोई कानून नहीं है.

समस्या का निदान सिर्फ जनता के अपनी और दूसरे की सुरक्षा के प्रति ज़िम्मेदारी के भाव को समझकर किया जा सकता है. हर बात के लिए सरकार या प्रशासन को दोषी नहीं माना जा सकता. देश का ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते ये हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम खुद भी सुरक्षित रहें और दूसरे को भी सुरक्षित रखें और हेलमेट या सीट बेल्ट सिर्फ आपकी सुरक्षा के लिए ही है. बाल बचाने या सरदर्द से अधिक जिंदगी बचाना ज़रूरी है.    

Aug 24, 2014

Loved it

It was really surprising to listen from a police man that " you please don't worry. It is not just my legal duty but the moral one also. Remind me tomorrow in my office timings. I'll definitely try my best to resolve your issue."
I wish I could hear it from every police man. 

Aug 23, 2014

Expressions

Expressions Part one :-


Sometimes words don't matter.. Just expressions...

Story to be continued.. 

Aug 22, 2014

मंजिल



            परिंदों को मिलेगी मंजिल एक दिन, ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं..

            वही लोग रहते हैं ख़ामोश अक्सर , ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं..

Aug 21, 2014

अभी नहीं तो कभी नहीं..

हम सोचते रह जाते हैं कि फलां काम हम कल करेंगे, ये वाला काम हम उस दिन करेंगे, दोस्त से मिलने हम उसके जन्मदिन पर जायेंगे, पढाई २ घंटे बाद करेंगे, करियर बना लेंगे बस थोडा मस्ती कर लें, पर दोस्तों वक़्त वाकई हाथ में नहीं आता. आप अपने अगले पल के बारे में भी नहीं जानते होते और प्लानिंग सालों की कर लेते हैं. जो वक़्त अभी है सिर्फ वही है, जो गया वो वापस नहीं आएगा, और जो आने वाला है उसका कुछ पता नहीं कैसा आएगा. यही सही वक़्त है वो करने का जो आप हमेशा से करना चाहते हैं. चाहे वो पढाई हो, जॉब बदलनी हो, प्यार करना हो, कुछ हासिल करना हो, घूमना हो, कुछ भी हो.. बस कर डालिए. रिस्क लेने से डर कैसा, एक विज्ञापन ही कहता है कि डर के आगे जीत है.
एक जिंदगी है, दोबारा मिलने के बारे में पता भी नहीं.. तो सिर्फ सोचने में टाइम ख़राब न कीजिये, इस वक़्त का सही इस्तेमाल कर लीजिये. थोडा जी लिया जाए अब, और हाँ.. अभी नहीं तो कभी नहीं.

Aug 20, 2014

It was lovely to be with you

Another refreshing day.. I love meeting new people.. And sometime some people become important part of my life... When you live alone in a city, a homely environment can give you a kick.. I got mine today.. It was an awesome day.. Loved each and every second of it... 

Aug 18, 2014

एक कथा





एक मंदिर के पुजारी थे. भगवान के बड़े भक्त. सुबह 4 बजे से उठकर पूजा पाठ से ही उनका दिन शुरू होता था.. हर बड़े दिन पर वो मंदिर के लिए दान लेते और बड़े ही जतन से आयोजन करते. मंदिर सजाते, महाआरती करवाते, बड़े बड़े लाऊडस्पीकर लगवा कर अखंडरामायण का पाठ कराते, नवरात्रों में माता की चौकी सजाते और जगराता करवाते. पूरे नौ दिन माता की भेंटे चलती थीं. उनके लिए सिर्फ भगवान का नाम जपना और जपवाना ही सब कुछ था. एक दिन समय आने पर उनकी मृत्यु हो गयी. सबने शोक मनाया कि पुजारी जी स्वर्गवासी हो गए. स्वर्ग के द्वार पर जब वो पहुंचे तो चौकीदार ने उनसे टिकट माँगा. उन्होंने अकड़ कर कहा कैसा टिकट? चौकीदार ने कहा कि अन्दर जाने के लिए एक खास टिकट लगता है जो कि आपके पास है नहीं.. ऐसा लगता है आपको नरक में ही जगह दी गयी होगी. इतना सुनना था कि पुजारी जी भड़क गए. उनकी जिंदगी भर की तपस्या का ऐसा मजाक!! चौकीदार ने उन्हें शांत करते हुए कहा चलिए आपकी मैनेजर से बात करा देते हैं. पुजारी जी पीछे पीछे चले. एक मेज पर फाइलों का अम्बार लगा हुआ था और चश्मा लगाये एक व्यक्ति उन फाइलों को इस तरह से पढ़ रहा था जैसे बस उन्हें घोंट कर पी जायेगा.
पंडित जी ने उन्हें नमस्कार किया. चित्रगुप्त ने उन्हें ऊपर से नीचे देखा और चौकीदार से बोला.. इस साल के बण्डल में से २,३५,५६७ वीं फाइल निकालो, बैठिये बैठिये. पिछले साल आई बाढ़ ने साला काम बढ़ा दिया. वैसे ही रोज़ एक्सीडेंट , ख़ुदकुशी, बीमारियाँ, रोज़ रोज़ होने वाले मर्डर से कम लोग मर रहे थे जो ये मुई बाढ़ और आ गयी. अब तो हर हफ्ते होने वाले प्लेन क्रैश और ट्रेन एक्सीडेंट ने और जान खा रखी है. हर दूसरे दिन फाइलों का नया बण्डल खरीदना पड़ता है. मंहगाई किसी के लिए क्या हमे तो लगता है हमारे लिए आई है.. सरकार कुछ करती नहीं है और काम हमारा बढ़ जाता है. हाँ पुजारी जी.. आप अपनी समस्या बोलिए.
पुजारी जी : जी देखिये चित्रगुप्त जी .. बात ऐसी है कि मैंने अपने जीवन को सिर्फ पूजा पाठ , साधना आदि में लगाया.. कोई बुरी बात नहीं की, कभी किसी महिला को बुरी नज़र से नहीं देखा फिर मुझे नरक क्यों. जिन लोगों ने कभी भगवान की तरफ श्रद्धा की नज़र से भी नहीं देखा क्या, इतने कुकर्म किये , क्या अब मुझे उनके साथ रहना होगा ? कृपा करिए महाराज.. ऐसा अनर्थ आप कैसे कर सकते हैं ?
चित्रगुप्त : जी पुजारी जी , अब आप देखिये, हम तो ठहरे मैनेजर. जो हमारे बॉस यानि आपके भगवान जी ने कहा, हमने किया. अब आपने इतनी पूजा पाठ की है तो चलिए आपको बॉस से मिलवा देते हैं. वही आपको इसका उत्तर बताएँगे.
दोनों ने भगवान के धाम जाने के लिए प्रस्थान किया. पंडित जी रास्ते भर सोचते रहे कि जिन नारायण के गुण गा गाकर जिंदगी बितायी आज उनसे साक्षात्कार होगा. बस उनके चरणों की धूलि मिल जाये. भगवान का नाम जपते हुए जैसे ही वहां पहुंचे, पंडित जी चौंक गए.
पंडित जी : भगवन , आप वैसे तो बिलकुल भी नहीं हैं जैसी मंदिर में फोटो लगी है. आपके  सोने के गहने कहाँ गए भगवन , क्या मंदी ने यहाँ भी अपने पैर जमा लिए? आप तो बेहद ही सौम्य दिखते हैं. (थोडा झेंपते हुए लेकिन मुस्कुराकर उन्होंने आगे जोड़ा) बुरा मत मानियेगा लेकिन अब क्या करें हमे तो आपको वैसे ही देखने की आदत हो गयी है.
भगवान : क्या मैं आपको इतना फ़ालतू दिख रहा हूँ कि आप अपनी ये बकवास किये जा रहे हैं. आप धरती वाले अगर मुझे एक 50 आँखों वाला भी दिखायेंगे तो क्या मैं वैसा हो जाऊंगा.
जो सुनने आये हैं वो सुनिए बस. आपने तीन क़त्ल किये हैं जिनकी वजह से आपकी स्वर्ग की सीट किसी और को दे दी गयी है और आपके इतने पूजा पाठ करने की ही वजह से  नरक में एक सीट बुक कर दी है. अब तो नरक में पांव रखना भी मुश्किल है. सोच रहे है कि दूसरा नरक भी खोल दें.. क्यों चित्रगुप्त जी क्या कहना है आपका.
चित्रगुप्त : जो आज्ञा भगवन .
पंडित जी मन ही मन सोचने लगे . लग रहा है यहाँ भी क्लोनिंग होने लगी है. कैसा भगवान है ये. बोले : भगवान मैंने आपके लिए इतने सद्भाव रखे , इतने व्रत रखे , आप जो चाहे कहिये लेकिन झूठ आपको शोभा नहीं देता. मैंने एक चींटी को भी जानबूझकर नहीं मारा, ३ खून कैसे कर सकता हूँ. आपको शायद कोई ग़लतफ़हमी हुई है.
भगवान जी ने चित्रगुप्त को इशारा किया और वे तीन लोगों को पकड़ लाये.
भगवान : हाँ तो पुजारी जी , इस बूढ़े आदमी को पहचानते हो.
पंडित जी : हाँ बिलकुल. ये तो हमारे ही गाँव का है . मंदिर से 4 घर छोड़ कर इसका घर है. अरे अपने राजेंद्र जी के पिताजी..
भगवान : बताओ तुम कैसे मरे?
बूढा आदमी : मैं बीमार था. मुझे डॉक्टर ने आराम करने के लिए कहा था. शोर शराबे से दूर रहने को कहा था . इन्होने बड़े बड़े स्पीकर पर आपके भजन चलवा दिए तो बैचैनी बढ़ने से दौरा पड़ा और मृत्यु हो गयी.
भगवान ने अब दूसरे लड़के को बुलाया. बताओ तुम कैसे मरे
लड़का : जी मैंने ख़ुदकुशी कर ली थी.
भगवान : क्यों?
लड़का : मैं 12th के एग्जाम मैं फेल हो गया था इसलिए
भगवान : क्यों फेल हुए? पढाई नहीं की थी?
लड़का : कैसे करता भगवान, मेरे एग्जाम के दिनों में इन्होने माता की चौकी लगा दी. दिन रात लाऊडस्पीकर बजता था. मैं पढ़ नहीं पाया और फेल हो गया.
पंडित जी को उस दिन का झगड़ा याद आ गया जब लोगों ने उनसे आवाज़ कम करने को कहा था और उन्होंने उन्हें धर्म विरोधी कहकर भगा दिया था.
भगवान ने अब एक छोटी लड़की को बुलाया और उससे मरने की वजह पूछी , उसने बोला कि मैं माँ के साथ मंदिर गयी थी. वहां से लौटते वक़्त २ लोगों ने मेरा अपहरण करने की कोशिश की. मेरी माँ और मैं मदद के लिए चिल्लाये लेकिन पंडित जी के लगाये लाऊडस्पीकर की आड़ में हमारी आवाज़ दब गयी. वो लोग मुझे ले गए और बाद में मुझे मार दिया.
पंडित जी को अब काटो तो खून नहीं.

भगवान : हाँ तो पंडित जी.. मैं आपसे ये कहना चाहता हूँ कि मैं बहरा नहीं हूँ. दिल के कोने से निकली एक आवाज़ पर ही मैं आ जाता हूँ और वैसे भी मेरा अंश सबमें है तो प्राणिमात्र को तकलीफ़ देने का अर्थ मुझे तकलीफ़ देना ही होता है. गीता में भी मैंने कहा है कि मैं संसार के हर कण में विराजमान हूँ. आपने नाहक स्वर्ग के लिए इतने जतन किये. इन लोगों की परेशानी को समझ लिया होता तो आज आपको यूँ नरक न जाना पड़ता. 


अब पंडित जी क्या कहते , बस सर नीचा करके चल दिए. उनके दिमाग में सिर्फ एक ख्याल था कि नरक में गर्म तेल में पकौड़े तले जाने वाली बात भी झूठ निकले.. 

Aug 17, 2014

Yes.. you are my love

I read somewhere... इश्क़ धीरे धीरे परवान चढ़ता है.
So I was not in a hurry. When he entered into my life, he was just a partner for me, nothing more than that, our relationship started as most relations do 'I didn't like him'. In the very first month of our relationship we fought number of times, sometimes even twice or thrice a day. Gradually I started hating him. I thought it would be better to give time to each other. I said let’s take a break of a week or two. He didn't answer. And then we didn't see each other for a week. At times I did miss him but I pretended as if I didn’t care. When we met again, he again helped me, he tried his best to impress me, but I don’t know for what reason, but I didn't really want to give a fresh start to us again.
One day I had to search data and prepare a report and submit it on paper. I had little 
time, of about 15 minutes. I was not at all prepared for it and I didn't have access to a computer, I didn't want to give any excuse for not being able to complete my work yet I had no other choice than to think of one. It was then at that moment that I found “My day of Love.”  
I realized that I can use internet to search data and can prepare a report on it only.  It had a function that I can transfer data from it to a pen drive. Yessssssss ….  A pen drive can be attached to it like it can be connected to a desktop or a laptop. I transferred the data and got it printed which resulted in a win-win situation. And that was the first time I kissed it. 

My new found love was none other than my cell phone. Without any showoff it just makes my work eeeeeaaasyyy… as it has a biggggggggg screen, it is there when I need it the most and it also keeps me entertained as a small TV. For me it is just awesome.
And now .. we are living happily with each other.


Aug 16, 2014

शुक्रिया..

कभी किसी ने मुझे सिखाया कि कभी खुद से जवाब मत दो चाहे कोई कितना भी बुरा करे तुम्हारे साथ. भगवान् सब देखते हैं. जिसने तुम्हारे साथ बुरा किया ,उसके साथ ठीक वैसा ही होगा जैसे उसने तुम्हारे साथ किया.
मुझे ये नहीं पता कि किसके साथ क्या हुआ और न ही मैं जानना चाहती हूँ लेकिन हाँ मेरे साथ बहुत कुछ अच्छा हुआ. वो सभी लोग जो मेरी जिंदगी को गर्त मैं धकेलने के लिए तैयार थे मुझसे अलग हो गए. उस वक़्त कुछ अच्छे लोगों को मैंने अपने साथ खड़ा पाया. भगवान का शुक्र है कि वो लोग आज भी वैसे ही मेरे साथ है. मेरा परिवार मेरी हिम्मत है और मेरी हिम्मत हमेशा मुझे मेरे बुरे वक़्त में खुद को सम्हालने और फिर से खड़ा होने कि ताकत देती है और कुछ लोग ऐसे मिले कि उनसे जिंदगी भर का रिश्ता बन गया.

आज मैं अपने इस छोटे से दायरे में बहुत खुश हूँ. इन सभी बेनाम लोगों का मेरे जीवन में आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया. 

Aug 15, 2014

इंतज़ार है मुझे.. मेरी आज़ादी का

एक दिन यूँ ही राह से गुज़रते हुए मैंने एक चाय की दुकान पर एक बहुत सुन्दर पिंजरा देखा.. और उस पिंजरे में उससे भी सुन्दर पंछी .. बहुत सारे.. वो दूसरे पंछियों से बहुत अलग थे.. हल्के पीले, हरे, लाल रंग के पंछी , रंगबिरंगे पंख , प्यारी सी चोंच, फुदकते हुए और भी प्यारे लग रहे थे..
रास्ते भर मैंने सोचा कि इतने प्यारे पंछियों को आसमान में उड़ते हुए देखा कितना अच्छा लगेगा.. मैंने सोच लिया था कि काम ख़त्म होने पर वापस जाकर उन पंछियों को उड़ाना ही है अब.. मैं बहुत ज्यादा देर उन्हें आसमान में उड़ते देखने से खुद को रोक नहीं पा रही थी.. मैंने अपने साथ काम करने वाली एक लड़की से कहा कि मुझे उन पंछियों को उड़ाना है.. मैं बहुत देर इंतज़ार नहीं कर पाऊँगी.. उस ने कुछ कहा नहीं बस हंसकर रह गयी.. उस दिन ज़रूरी काम आ जाने की  वजह से मैं भी वापस नहीं जा पायी.
2-3 दिन गुज़र गए. फिर से हम साथ बैठे हुए थे. उसने कहा पता है रेखा तुम्हारी एक बात उस दिन मुझे बहुत अच्छी लगी थी कि तुम्हें उन पंछियों को उड़ाना है. खुले आसमान मैं आज़ाद पंछियों को उड़ते देखकर कितना अच्छा लगता है न.. उन्हें मैंने उसकी तरफ देखा.. आँखों मैं कई सवाल लेकर.. उसने मेरे पूछने का इंतज़ार नहीं किया.. मैं तुम्हारी तरह जिंदगी जीना चाहती हूँ. एक वक़्त था जब मुझे भी आसमान की बुलंदियों पर जाना था.. लेकिन माँ के इस दुनियां से जाने के बाद पिताजी ने समाज और रिश्तेदारों की बात मानकर मेरी शादी कर दी. मैंने सोचा कि मैं अपने ससुराल वालों शादी के बाद काम करने के लिए धीरे धीरे मना लूंगी .. मैंने शादी कर ली.. माँ की याद आती थी तो सासू माँ मैं माँ को ढूँढना शुरू कर दिया. पर मेरी जिंदगी उतनी आसान नहीं रही जितना मैंने सोचा था. काम करने के लिए घर वाले मान तो गए लेकिन मेरे ऊपर जिम्मेदारियों का इतना बोझ लाद दिया है कि मैं अब सिर्फ छटपटा कर रह जाती हूँ. एक शहर मैं रहकर भी अपने बूढ़े और अकेले पिता के पास जाने के लिए मुझे 10 बार पूछना पड़ता है और अगर चली जाऊँ तो समय की पाबन्दी होती है . अगर कुछ कहती हूँ तो सिर्फ एक जवाब किसने कहा है काम करने को. मुझे 3 साल हो गए पर आजतक मैं उन्हें ये नहीं समझा पाई कि मैं सिर्फ इसलिए काम करती हूँ क्यूंकि काम करना मुझे अच्छा लगता है. जितना तुम्हें बताया हालात उससे भी ज्यादा ख़राब हैं. मुझे घूमने की आज़ादी नहीं चाहिए लेकिन हाँ आज भी मुझे अपने सपनों को पूरा करने की आज़ादी का इंतज़ार है. 
खैर मैं अपना सपना तो पूरा नहीं कर पायी लेकिन हाँ मैंने समझौता कर लिया है. अपने इस काम मैं ही ख़ुशी ढूढ़ ली है. बच्चों को पढ़ाती हूँ और उन्हें सिर्फ यही समझाती हूँ कि यही एक जिंदगी है, इस जिंदगी का एक लक्ष्य बनाना और अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए जी जान से जुट जाना. बाद मैं ये आज़ादी मिले न मिले.
मैं बिना देर किये सीधे दुकान के लिए निकल गयी. वहां अब कोई पिंजरा नहीं था. मुझे दुःख हुआ. मुझे देर हो गयी थी. लेकिन पूछने पर पता चला एक लड़की आई थी और खरीद के ले गयी.

होठों पर बस एक हल्की मुस्कराहट आ गयी. 

Aug 6, 2014

आज एक लड़की से मिली.. बेहद खूबसूरत..

आज एक लड़की से मिली.. बेहद खूबसूरत..
हुआ यूँ कि मेरी एक दोस्त ने नया घर खरीदा.. उसके घर के लिए ज़रुरत का सामान लेने हम एक दुकान पर गए.. वहां पर मैं उससे मिली ..
शादी नहीं हुई थी अब तक उसकी.. और उसमे खास दिखने वाली कोई बात भी नहीं थी...
उसने बहुत ही पुराने स्टाइल का सूट पहन रखा था.. वो भी आउटडेटेड.. फैशन की कोई समझ नहीं थी.. लेकिन हाँ.. दुकान के हर सामान और उसकी कीमत की पूरी जानकारी थी..
शायद ही वो कभी पार्लर जाती होगी .. मैंने देखा कि उसके हाथों पर जलने के निशान थे.. जगह जगह बड़े काले धब्बे थे.. बेहद पतली दुबली.. ज्यादा पढ़ी भी नहीं थी.. पढ़ नहीं पाई होगी शायद.
लेकिन वो बहुत खूबसूरत थी... उसने २ छोटे छोटे क्लिप्स लगा रखे थे जो उसे और खूबसूरत बना रहे थे.. और एक चीज़ जो सबसे सुन्दर थी.. वो थी उसकी मुस्कराहट.. एक हल्की मुस्कराहट के साथ हर सामान को बेहद करीने से निकलना.. दिखाना और मुस्कुराकर पूछना इसमें और रंग दिखा दूँ आपको?
ऐसा बिलकुल भी नहीं था कि सिर्फ दुकान पर होने कि वजह से उसे जबरन मुस्कुराना पड़ रहा हो.. वो मुस्कराहट जैसे उस चेहरे के लिए ही थी.. न शिकन , न थकान सिर्फ दुकान का काम. हर बात को धीमी , सधी हुई और मिठास भरी आवाज़ के साथ बोलना और कुछ भी मांगने पर उसी मुस्कराहट के साथ तुरंत सामान ले आना..
जब तक मेरी दोस्त ने सामान लिया.. मैंने उसे देखा... शायद हालातों का शिकार वो भी हुई होगी लेकिन उसके बावजूद कैसे एक मुस्कराहट में सब छिपा लिया होगा .. अपने अरमान, सपने सब कुछ..

मुझे नहीं पता कि अच्छा दिखने या ख़ूबसूरती को मापने के मायने क्या होते हैं लेकिन मेरे लिए वो आज के दिन में मिली सबसे खूबसूरत लड़की थी.. 

Jun 14, 2014

एक दोस्त है मेरी. हर वक़्त चुप रहती है. ज्यादा किसी से बात नहीं करती. हँसी से कोसो दूर उसकी अपनी दुनियां है जिसमे केवल एक गहरी चुप्पी है. कई बार जानने कि कोशिश पर जवाब नहीं मिला. बहुत कुरेदने पर जब चुप्पी की वजह पता चली तो शर्मिंदगी और ग़ुस्से से भर गयी. शर्मिंदगी इसलिए कि हम आज भी ऐसे घिनोने समाज का हिस्सा हैं और ग़ुस्सा अपनी दोस्त पर कि आज तक वो इतना सब बर्दाश्त क्यों कर रही है. वजह कुछ यूँ थी.. मेरी मित्र २५ लोगों के एक परिवार मैं रहती है. उसका सगा चाचा बचपन से लेकर आज तक उसका शोषण करता आ रहा है. बचपन मैं कुछ ज्यादा हद तक, बड़े होने पर चूँकि उसके लिए समस्या हो सकती है इसलिए सिर्फ घूरने और छेडछाड तक सीमित है. और दोस्त इसलिए चुप है क्यूंकि उसकी बहिन बहुत छोटी है और वो उसे हर कीमत पर बचाना चाहती है. उसे डर है बता देने पर या तो परिवार वाले चुप रहने को कहेंगे या कहीं बाहर भेज देंगे. वो इंसान तो आपकी हरकतों से बाज आने से रहा तो कहीं उसकी बहिन भी इस नीचता का शिकार न हो जाए.
भारत देश में अभी भी बाल यौन शोषण या चाइल्ड एब्यूज ऐसी समस्या है जिसके बारे में लोग बात नहीं करते या करना नहीं चाहते . और ये समस्या हर वर्ग के घरो में है. देश ही नहीं विदेशों में बड़े से बड़े लोगों के नाम समय समय पर अखबारों में सामने आये हैं.
देश के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी थी जिसके अनुसार भारत में करीब 53.22 प्रतिशत बच्चे एक या एक से ज्यादा बार इसका शिकार हुए है. 21.90 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण और 50.76 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण के अन्य प्रकारों के शिकार हुए. शर्मिंदा कर देने वाला सच ये भी है कि 50 प्रतिशत बच्चे अपनों के ही शिकार हुए. ज़्यादातर मामलों में पिता या सगे चाचा ताऊ या मामा ही दोषी थे. रिपोर्ट के ही मुताबिक अधिकतर बच्चों ने कभी अपना मुह नहीं खोला जैसा कि मेरी दोस्त ने भी किया. और ऐसा नहीं है कि सिर्फ लड़कियां इस समस्या की शिकार हैं , लड़के भी उतने ही पीड़ित हैं.
अब इसके ज़िम्मेदार कौन? सरकार, मंत्री, न्यायपालिका, पुलिस, समाज ? नहीं. ज़िम्मेदार हम. हम सब. सबसे पहले वो लोग जो अपनी घटिया मानसिकता और मानसिक बीमारी का शिकार इन बच्चों को बनाते हैं. दूसरे वो लोग जो अपने बच्चों पर भरोसा न करके उन्हें या तो डांट देते हैं या चुप रहने को कहते हैं. तीसरे वो लोग जो इसके खिलाफ सिर्फ इसलिए आवाज़ नहीं उठाते क्यूंकि समाज क्या कहेगा या फलां व्यक्ति उनका रिश्तेदार है या अपना है. समय समय पर टीवी और फिल्मों के ज़रिये इस समस्या के बारे में कहा गया, दिखाया गया पर समस्या आज भी जस की तस है. कम से कम अपनी दोस्त के बारे में जाने के बाद मैं ये कह सकती हूँ. हम दोहरे व्यक्तित्व वाले समाज में जीते हैं जहाँ एक तरह बच्चे को हर धर्म में भगवान का रूप बताया जाता है और उसी धर्म के अनुयायी अपने खुद के बच्चों को भी नहीं बक्शते.
पिछले कुछ दिनों से भारत के बच्चे बच्चे की जुबां पर है कि अच्छे दिन आने वाले हैं. भारत का हर एक नागरिक अपने अच्छे दिनों के ख्वाब देख रहा है. अब इनके भी अच्छे दिनों की बारी आनी चाहिए जिससे किसी भी बच्चे का कोई बीता कल उसे न ही डराए न ही चुप रहने पर मजबूर करे.जो लोग दोषी हैं उनकी सजा भी आपको तय करनी होगी. जो आपके साथ हुआ, या आपके बच्चों के साथ हो रहा है वो आगे किसी के साथ न हो या आपके बच्चा इस सदमे से उबार जाए इसकी भी कोशिश आपको ही करनी होगी. ज़्यादातर घरों में बच्चे से खुलकर बात नहीं की जाती न ही उसकी बातों को ज्यादा महत्व दिया जाता है इसलिए बच्चा बेख़ौफ़ आपको अपने साथ हुई ज्यादती के बारे में बता सके, ऐसा माहौल भी आपको ही बनाना होगा जिससे किसी भी मासूम को खुद से आँखें चुराकर न जीना पड़े. खुलकर बोलने से ही बात बन पाएगी. आप भी बोलिए और अपने बच्चों को भी बोलने का मौका दीजिये. अपनी उस जैसी हर दोस्त से भी मैं कहूँगी वक़्त आने का इंतजार मत कीजिये. यही समय सही है. किसी और का घोला हुआ ज़हर क्यों पीना. बात करिए. चुप रहने से कुछ नहीं होगा. बात करना तो बनता है अब. जिंदगी आपकी तो बेख़ौफ़ जीने का हक भी सिर्फ आपका है.    


May 16, 2014



मोदी जी..
आपको बधाई कि अब आप भारत देश के प्रधानमंत्री कहलाये जायेंगे. आपके कारन ही भाजपा को इतनी बड़ी जीत मिल पायी है. आप अब अपने किये हुए वादों को पूरा करने की ओर बढ़ेंगे जैसा कि सब आपसे उम्मीद कर रहे हैं.  कुछ उम्मीदें भारत कि एक आम लड़की भी रखती है आपसे. मैं जानती हूँ कि आप पर उमीदों का बोझ पहले से ही बहुत है पर आपने अच्छे दिनों के आने का ख्वाब दिखाया है तो मैं भी अपने अच्छे दिनों के आने का इंतजार करुँगी. रोज़ रोज़ अखबारों में बलात्कार, लूट और छेड़खानी की खबरें पढ़कर मैं आहत हो चुकी हूँ इसलिए अपनी उम्मीदों का बोझ भी आपके सर डाल रही हूँ.  आपसे कुछ ऐसी उम्मीदें हैं कि :

मुझे एक ऐसा देश चाहिए जहाँ मुझे अपने हक के लिए रिजर्वेशन की ज़रुरत न पड़े. संविधान में मिले बराबरी के अधिकार को मैं खुलकर जी पाऊं. अपने हक के लिए लड़ने पर मुझे दोयम दर्ज़े का कहकर संबोधित न किया जाए.

मैं जब चाहूँ, घर से बाहर ये सोच कर निकल पाऊं कि हाँ मैं सही सलामत, बिना किसी परेशानी के वापस आ जाउंगी और अगर किसी परेशानी मैं फंस भी जाऊ तो पुलिस के पास जाने में मुझे हिचकिचाहट न हो.

एक ऐसा समाज चाहिए जहाँ मुझे गर्व महसूस हो कि मैं लड़की हूँ. हर बार मुझे ये विचार न कचोटे कि काश में एक लड़का होती. मेरे माता पिता को मेरी शादी के लिए अपना बैंक अकाउंट खाली न करना पड़े और इतना खर्च करने के बाद फिर भी दहेज़ की बलि मुझे न चढ़ाया जाए.

मेरी ज़रुरत सिर्फ नवरात्रों तक ही न हो और मेरे हुनर का दायरा सिर्फ रसोईघर और घर गृहस्थी तक ही सीमित न माना जाए. देश और दुनिया से जुड़े मुद्दों पर मेरी राय को सिर्फ इसलिए न नकारा जाए क्यूंकि मैं एक लड़की हूँ और लड़कियां तो बोलती ही रहती हैं.

अपनी पसंद का करियर चुनने में मुझे अपने लड़की होने को ध्यान में न रखना पड़े. रोज़गार के अवसरों में मेरे लड़की होने को नहीं वरन काबिल होने को ध्यान में रखा जाए.

ट्रेन या बस में शहर से बाहर जाते वक़्त मेरे माता पिता को कभी ये फिकर न करनी पड़े कि मेरी बेटी सही वक़्त और सही तरीके से पहुंची होगी कि नहीं.

आशा करती हूँ कि आप इस आम भारतीय लड़की की इन उम्मीदों को पूरा करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करेंगे और मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि अपने आपको साबित करने में कोई कसर नहीं छोडूंगी.


Apr 1, 2014

बेख़बर आज़ाद जीना है मुझे...



































फिल्मों में ये देखकर कि किस तरह हीरो बना  एक आम आदमी इतने सारे बुरे लोगो पर भारी पड़ता है. बहुत अच्छा लगता है जब वो भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ लड़ता है. अपने परिवार की रक्षा करता है जाहिर है किसी भी आम आदमी को ये देखकर अच्छा ही लगेगा कि कोई तो है जो अच्छा सोचता है और करता है. फिल्म में ही सही.नहीं नहीं मैं फिल्म समीक्षक नहीं हूँ. मैं बस आप सभी से अपने कुछ ओब्ज़र्वेशन शेयर करना चाहती हूँ. जो काम अक्सर  फिल्म मैं एक एक हीरो करता है  अगर वही काम एक एक आम लड़की करना चाहे, मसलन लॉन्ग ड्राइव पर जाना दोस्तों के साथ देर रात यूँ ही मटरगश्ती करना,अपने फैसले खुद लेना और जिन्दगी अपनी शर्तों पर जीना.न नहीं कर सकती.
कहा जाता है कि फिल्मे समाज का आइना होती है. बहुत याद करने पर याद आता है कि उँगलियों पर गिनी जानी वाली कुछ फ़िल्में ही ऐसी बनी हैं जिसमे किसी महिला चरित्र को पुरुषों से लड़ते दिखाया गया हो. अब बलात्कार को ही लें किस तरह फ़िल्में जेंडर स्टीरियो टाइपिंग को बढ़ावा देती हैं और हम उसे समाज का सच मान लेते हैं.किसी भी समाज में बलात्कार की जगह नहीं होनी चाहिए और दुर्भाग्य से ऐसा होता भी है तो दोषी स्त्री मानी जाती है और वास्तविक दोषी अपनी मर्दानगी का डंका पीटते हैं. महिला चरित्र खुदखुशी कर लेती है या फिर समाज के तानो का शिकार तब तक होती है जब तक कोई सहृदय पुरुष उसकी ज़िम्मेदारी नहीं उठा लेता या उससे शादी नहीं कर लेता.
अब सवाल ये है कि हम अभी भी ऐसे ही समाज का हिस्सा ही  क्यों हैंक्यों अभी भी महिलाओं के ख़ुशी से जीने के अधिकार एक पुरुष के हाथ में हैं.बात केवल इतनी सी है कि महिलाओं के लिए प्रथाओ और परम्पराओं को बनाने वाले पुरुष ही हैंमहिलाओं के लिए सभी तरह के कानून बनाने वाले पुरुष हैं. परिवार में उनकी जगह का निर्णय लेने वाले भी पुरुष हैं. महिलाओ के अधिकारों की आवाज़ सुनने वाले भी पुरुष हैं.गवर्नेंस में महिलाओं की भागीदारी समाज में महिलाओं की संख्या के मुकाबले नगण्य है जो हैं भी उनके बारे में आमतौर पर माना जाता है कि वो किसी पुरुष की कृपा पर ही राजनीति में आयी हैं . यानि एक आम महिला को अपने आप को साबित करने के लिए पुरुषों के मुकाबले बार बार अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है .संसद में महिलाओं के लिए ३३ प्रतिशत आरक्षण की मांग भी चौदहवीं लोकसभा में अनसुनी रह गयी  जब समाज में महिलाओं के लिए निर्णय लेने का अधिकार पुरुषों के पास होगा तो किस प्रकार के बदलाव  की उम्मीद करें.अभी महिला दिवस पर एक दिन के लिए महिलाओं को सम्मान दिया गया. पर क्या वाकई महिलाऐं केवल सिर्फ इस एक दिन के सम्मान कि हकदार हैं?हर दिन महिलाओं से हर बात पर अग्नि परीक्षा की उम्मीद की जाती है. रामायण काल से चला आ रही है ये परंपरा. अकेले चलना चाहा तो अग्निपरीक्षालीजिये हमने एवरेस्ट फ़तेह करके दिखा दिया. पढ़ना चाहा तो अग्निपरीक्षा,लीजिये हमने हर बार बोर्ड के पेपरों में लड़कों से अव्वल आकर दिखा दिया. उड़ना चाहा तो भी अग्निपरीक्षातो लीजिये हमने अंतरिक्ष तक पहुँच कर दिखा दिया. आत्मनिर्भर होना चाहा तो अग्निपरीक्षालीजिये हमने सभी शीर्ष कंपनियों का सरताज बनकर दिखा दिया. एक छोटी सी बात समझने में इस समाज को कितने वर्ष और लगेंगे कि अब वो दौर गया जब भगवान्समाजपरिवारदुनियां और इज्ज़त का डर दिखाकर लड़कियों को उनकी मंजिलों तक नहीं  पहुँचने दिया जाता था . बदलाव हो भी रहा है और आगे भी होगा.
चुनावों की गूँज अब हमारे गलियारों में दस्तक दे रही है. इस बार हम अपना सशक्तिकरण खुद करने की ठान लें. ज्यादा से ज्यादा महिलाएं वोट दें और अपने लिए बेहतर कल का चुनाव करें.
बेख़बर आज़ाद जीना है मुझे,  बेख़बर आज़ाद रहना है मुझे.

Mar 21, 2014

Finally... तुम मिल गए



कल अचानक एक पुराने दोस्त से बात हुई. हम 8 साल बाद बात बात कर रहे थे, 3 घंटे, उफ्फ्फ... याद भी नहीं कि पिछली बार किसी से इतनी लम्बी बात कब हुई थी, वक़्त का पता ही नहीं चला. हम बातें करते गए, ऐसा लग रहा था कि बताने को कुछ रह ना जाए. 8 सालों में हम दोनों की जिंदगी में जो कुछ भी हुआ, हम एक दूसरे को सब बता देना चाहते थे, कौन नया आया, कौन गया, कितने दोस्त बने, किसे धोखा दिया, किसने तंग किया, पढाई कहाँ की, जॉब कैसी चल रही है.. फ़ोन में घुसकर उसके पास पहुँच जाने का मन कर रहा था, प्लानिंग होने लगी, कैसे मिलना है, कहाँ मिलना है, मिलेंगे तो कहाँ कहाँ घूमेंगे, कैसे वक़्त बिताएंगे.. ख़ुशी का आलम ये था कि अगर फ़ोन से जाने का कोई तरीका होता तो वो अमल में लाया जा चुका होता. उसने कहा.. वक़्त कितनी जल्दी गुज़र गया न, पता ही नहीं चला, ऐसे लग रहा है जैसे कल की ही बात हो. ये छोटी सी बात उसने यूँ ही कही, लेकिन वाकई वक़्त कितना जल्दी गुज़र जाता है, और इस वक़्त की  आपाधापी में हम भूल जाते हैं कि कुछ अपने पीछे छूट गए. वो लोग जो जिनके चेहरे की ख़ुशी की वजह आप ही हैं. बस हम समझ नहीं पाए. बड़े मुकाम हासिल करने कि चाह में उन अपनों की सुधि ही नहीं ली. आज टेक्नोलॉजी बूम के दौर में हम टच में रहने की बजाय आउट ऑफ़ टच होते जा रहे हैं. हमारे पास इतने सारे एप्प्स हैं फिर भी हम रिश्ते सम्हालने में नाकाम हो जाते हैं. आप ही सोचिये कि जब कुछ स्माइली हमारे इमोशन को बयां करती हैं, तो कैसे हम उन रिश्तों को सहेज पायेंगे. इन एप्प्स के चक्कर में हम भूल जाते हैं कि दोस्ती वर्चुअल कभी नहीं हो सकती. मुझे अच्छे से पता है कि आपको ज्ञान लेना पसंद नहीं है. तो सिर्फ एक छोटा सा काम करते हैं. 
, थोड़ी देर के लिए हम कुछ वक़्त पहले की दुनियां में चलते हैं जब हमारी जिंदगी में दोस्तों की  जगह एप्प्स ने नहीं ली थी. थोडा सा वक़्त निकलते हैं उन पुराने दोस्तों के लिए जो आपकी मुस्कराहट के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे. थोड़ी देर उन दोस्तों के साथ बचपन को जीकर देखते हैं. बिना मिलावट की हँसी हसकर देखते हैं.. अपने पुराने रिश्तों को फिर से जिंदा करने की कोशिश करते हैं, और जब आप ये कर लेंगे तो यकीन मानिए आप खुद को पहले से ज्यादा सुकून में पायेंगे. पहले से ज्यादा खुश पायेंगे, और..
ख़ुशी सिर्फ तभी मिलेगी जब आप ख़ुशी को पहचानना सीख लेंगे.    


Mar 13, 2014

बस यूँ ही

कभी कभी सोचती हूँ कि जिंदगी यूँ न होती तो कैसी होती. आप उम्मीदों के साथ आगे बढ़ते हैं, खुद के लिए एक मुकाम तय करते हैं, टूटते हैं, बिखरते हैं, फिर उठ खड़े होते हैं और फिर खुद से नयी उम्मीदें पालते हैं. कहते हैं न कि चलती का नाम जिंदगी.


Mar 9, 2014

आप सोचिये

हॉल में जाने का मौका नहीं मिला तो मैंने लैपटॉप पर कल जय हो देखी. अच्छी लगी. बहुत ख़ुशी हुई ये देखकर कि किस तरह एक आम आदमी इतने सारे बुरे लोगो पर भारी पड़ता है. बहुत अच्छा लगता है जब वो भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ लड़ता है. अपने परिवार की रक्षा करता है खासकर आपनी बहिन की जब फिल्म में एक बुरे चरित्र का व्यक्ति उसकी इज्ज़त पर हाथ डालता है. ज़ाहिर है कि किसी भी आम इंसान को ये देखकर अच्छा ही लगेगा कि कोई तो है जो अच्छा सोचता है और करता है. फिल्म में ही सही.
नहीं नहीं मैं फिल्म समीक्षक नहीं हूँ. मैं बस आप सभी से अपने कुछ ओब्ज़र्वेशन शेयर करना चाहती हूँ.

एक सवाल : जो काम उस फिल्म मैं एक हीरो ने किया अगर वही काम एक लड़की करना चाहे तो. एक आम लड़की, जिसके दिल में देश के लिए बेपनाह मोहब्बत है, जो दुखी लोगो को देखकर खुद भी दुखी होती है और उनकी मदद की हरसंभव कोशिश करती है. उसे भी भ्रष्ट राजनेताओं से उतनी ही चिढ़ है, इस सिस्टम के खिलाफ वो भी लड़ना चाहती है पर वो नहीं कर सकती. क्यों ?
जवाब: वैदिक संस्कृति के इस देश में लड़कियों को देवियों का दर्ज़ा तो दे दिया गया लेकिन सिर्फ दर्ज़ा दिया गया, माना नहीं गया. अगर कोई भी लड़की समाज द्वारा बताई गयी उसकी हदों से बहार जाकर कोई काम करना चाहे या करती है तो सबसे पहला काम कि उसके चरित्र का हनन कर दिया जाए. ऐसा कुछ कहा जाए कि वो अपनी नज़रों में ही गिर जाए. इससे काम न चले तो उसके शरीर को हथियार बनाओ. भगवान् ने उसे ऐसा शरीर दिया ही इसीलिये है कि जब जैसी ज़रुरत पड़े, इस्तेमाल करो. इसके बाद भी अगर कुछ कहने की हिम्मत करे तो सामूहिक या अप्राकृतिक बलात्कार जैसे अस्त्र कब काम आयेंगे. इसके बाद उसकी जान ले लेना ही एकमात्र उपाय बचता है जो कि आजकल के दौर में आसान भी है.
थोडा हैवी हो गया ना. होने दीजिये बेहतर है. हर बार चीज़ों को ज्यादा लाइट लेते लेते हम अपनी इंसान होने की जिम्मेदारियां भी भूलते जा रहे हैं शायद. हमारा काम सिर्फ ख़बरें पढ़ लेना और उन पर अफ़सोस भर कर लेना रह गया है. ज्यादा दुःख हुआ तो एक कैंडल मार्च निकल कर तसल्ली दे ली खुद को.
अब एक और सवाल: लड़कियों के सम्मान और मर्यादा के लिए इतनी बातें लिखी जाती है, सुनाई जाती हैं, दिखाई जाती हैं, फिर भी ऐसा क्या है जो आपको रोकता है सही को सही या ग़लत को ग़लत कहने से. इसका जवाब तो अब आपके पास ही होगा.
ये सिर्फ हमारे ही देश में हो सकता है कि नवरात्रों में माता के पूर्ण आशीर्वाद के लिए हम नौ दिन कन्या खिला सकते हैं पर एक कन्या को जन्म नहीं लेने देना चाहते.
अपनी बेटी को विदा करते वक़्त अपने खाली बैंक अकाउंट के लिए ससुराल वालों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं पर वही बैंक अकाउंट भरने के लिए दहेज़ लेने और बहू को गाहे बगाहे तंग करने से नहीं चूकते.
बचपन से लड़कियों को राधा और दुर्गा के रूप में देखकर खुश होते हैं पर ना तो राधा की तरह उन्हें प्यार करने का हक़ है और ना ही दुर्गा कि तरह अपनी शक्तियों को पहचानने का.
किसी भी लड़की को जीने के लिए एक पति नाम के सहारे कि ज़रुरत होती है. हसने वाली ही बात है कि बचपन में देवी रूप में पूजी गयी कन्या को ख़ुशी भी एक सहारे से नसीब होगी और इस नियम के विरूद्ध जाने कि कोशिश कि तो वही एक हथियार.. चरित्रहनन .
लड़कियों से हर बात पर अग्नि परीक्षा की उम्मीद की जाती है. रामायण काल से चला आ रही है ये परंपरा. अकेले चलना चाहा तो अग्निपरीक्षा, लीजिये हमने एवरेस्ट फ़तेह करके दिखा दिया. पढ़ना चाहा तो अग्निपरीक्षा, लीजिये हमने हर बार बोर्ड के पेपरों में लड़कों से अव्वल आकर दिखा दिया. उड़ना चाहा तो भी अग्निपरीक्षा, तो लीजिये हमने अंतरिक्ष तक पहुँच कर दिखा दिया. आत्मनिर्भर होना चाहा तो अग्निपरीक्षा, लीजिये हमने सभी शीर्ष कंपनियों का सरताज बनकर दिखा दिया. एक छोटी सी बात समझने में इस समाज को कितने वर्ष और लगेंगे कि अब वो दौर गया जब भगवान्, समाज, परिवार, दुनियां और इज्ज़त का डर दिखाकर लड़कियों को उनकी मंजिलों तक ना पहुँचने दिया जाता था . बदलाव हो भी रहा है और आगे भी होगा. 
मैं वही एक लड़की हूँ, एक आम लड़की, जिसके दिल में देश के लिए बेपनाह मोहब्बत है, जो दुखी लोगो को देखकर खुद भी दुखी होती है और उनकी मदद की हरसंभव कोशिश करती है. उसे भी भ्रष्ट राजनेताओं से उतनी ही चिढ़ है, इस सिस्टम के खिलाफ वो भी लड़ना चाहती है पर लड़ नहीं सकती. क्यों?
आप सोचिये.


Jan 27, 2014

JAI HIND

आजकल व्हाटसेप्प पर ये मेसेज खूब फॉरवर्ड किया जा रहा है. Please read once. 

MUST READ..!

Some facts you may not be knowing about INDIANS |

1. 38% of doctors in America are INDIANS.

2. 12% of the scientist in America are INDIANS.

3. 28% of the IBM employees in the world are INDIANS.

4. 36% of the NASA employees are INDIANS.

5. 17% of the INTEL employees in the world are INDIANS.

6. 34% of the MICROSOFT employees are INDIANS.

7. Sanskrit is the mother language of all the European languages. WHICH MEANS SWEDISH TOO.

8. SANSKRIT is most suitable language for computer software reported in Forbes magazine, 1987.

9. CHESS was invented in INDIA.

10. Creator and founder of HOTMAIL is INDIAN (SABEER BHATIA).

11. Aryabhatta who was from INDIA, invented the number ZERO.

12. INDIANS invented the NUMBER SYSTEM.

13. ALGEBRA was invented in INDIA.

14. CALCULAS and TRIGNOMETRY came from INDIA.

15. The general manager of HEWLETT PACKARD (HP) is INDIAN (RAJIV GUPTA).

16. Creator of the PENTIUM CHIP(90% of the today's Computer runs on it) is INDIAN (VINOD DAHM).

17. BHUDHYANA first calculated the value of pi (3.14), and he explained the concept of what is known as the Pythagorean theorem. he discovered this in the 6th century long before the European mathematicians.

18. We have almost 5600 different newspapers and 3500 different magazines with approximately 120 million readers every day.

19. SUSHRUTA (from india) is the father of SURGERY. 2600 year ago he and health scientist of his time conducted complicated surgeries like --> artificial limbs, fractures, urinarystones and even plastic surgery and brain surgery

20. LAXMI MITTAL (steel king) is the richest man in ENGLAND. His house in England is the most expensive house in the world, more than 70 million pounds.

21. ALBERT EINSTEIN once said:- We own a lot to the INDIANS,who taught us how to count, without which no worthwhile scientific have been made.

22. INDIA has the THIRD largest army in the world with more than 105 million men......

I'm Proud To Be An Indian...) |
Happy republic day in Advance to All my fellow Indians
|Jai Hind |

आजकल व्हाटसेप्प पर ये मेसेज खूब फॉरवर्ड किया जा रहा है।
मुझे इस मेसेज से किसी तरह की कोई प्रॉब्लम नहीं है। प्रॉब्लम बस इस बात से है कि क्या यही मेसेज हम हर बार फॉरवर्ड करते रहेंगे या इस लिस्ट में आगे कुछ जोड़ने का प्रयास भी करेंगे। क्या केवल 22 उपलब्धियां ही रहेंगी फ़क्र करने के लिए ?
हम भारतीयों की इसी आदत से आज तक हम विकासशील देश कहे जाते हैं. सिर्फ इतिहास को पकड़ कर बैठे रहते हैं. देश कहने को युवा देश है पर 15 अगस्त या 26 जनुअरी पर युवा सिर्फ मेसेज फॉरवर्ड करने को अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं।
दोस्तों अभी हम सभी को बहुत मेहनत करनी है। अपने देश को महिलाओं के लिए एक सुरक्षित राष्ट्र बनाना है , देश की राजनीति में अपना योगदान देना है, देश से अशिक्षा को मिटाना है , समानो में समानता के अधिकार के लिए कार्य करना है, दूसरे देशों से आने वाले अतिथियों को सुरक्षा व सम्मान के दिए हुए वादे को पूरा करने मैं मदद करनी है और भी ऐसे बहुत सारे काम हैं जो अभी इस देश कि बेहतरी के लिए करने हैं. ये केवल छुट्टी का दिन नहीं है.
देश के स्वतंत्रता सेनानियों और सैनिकों का लहू बहा है जिससे आप सुरक्षित जी सकें।

I hope u'll pay a little bit attention to my words. Please contribute to make our country The "BEST" country in the world.

JAI HIND