Dec 14, 2014

हम अपनी ही सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं..

नहीं नहीं, मैं नहीं लगा सकता मेरा सर दुखता है, वैसे मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है लेकिन बस घुटन महसूस होती है, साइड का नहीं दिखता बड़ी दिक्कत होती है, मेरे बाल ख़राब हो जाते हैं यहाँ तक कि एक बार भी लगाओ तो झड़ने लगते हैं, सर पर इतना बड़ा बोझ लेकर नहीं चल सकती मैं, अरे ठीक है अब भाषण न दिया करो.
ये हैं कुछ बहाने, हेलमेट न लगाने के. फिर से पढ़िए ज़रा. सारे बहाने सिर्फ इसलिए हैं जिससे हेलमेट न लगाने को सही साबित किया जा सके और दूसरे को इसे न लगाने के कारण गिनाये जा सकें.
इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन ऑफ़ मोटर व्हीकल मेनुफेक्चर्स 2013 के आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया में दो पहिया वाहन बनाने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. हमारे देश में लगभग 15 मिलियन लोग दो पहिया वाहन चलाते हैं. नियमों के अनुसार इतने ही लोगों को हेलमेट भी लगाना चाहिए लेकिन वास्तव में हेलमेट लगाने वाले संख्या में कम हैं. कुछ लोग सिर्फ इसलिए हेलमेट लगाते हैं कि चालान न कट जाए. उनके लिए सुरक्षा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. पिछले दिनों सितम्बर में सरकार ने एक आदेश निकला जिसके तहत बिना हेलमेट वाले दुपहिया वहां और बिना सीट बेल्ट के कार चालको को पेट्रोल या डीजल नहीं दिया जायेगा. अगले दिन अख़बार में बिना हेलमेट और सीट बेल्ट के बहुत से लोग पेट्रोल लेते नज़र आये. उसके बाद से आज तक ले रहे हैं. उसके पहले सरकार ने महिलाओं और बच्चों के लिए भी हेलमेट पहनना अनिवार्य कर दिया. सरकार आदेश निकालकर ने अपना काम किया अच्छी बात है लेकिन यहाँ अखरने वाली बात ये है कि हमे इस तरह के आदेशों की ज़रुरत क्यों पढ़ती है बार बार. हमारे देश में कोई भी अच्छी आदत केवल क़ानून के डर से ही ही लोग अपनाते हैं. नियमों को मानने से अधिक उन्हें तोड़ने और बचने के लिए रसूख़ के इस्तेमाल पर अधिक ध्यान होता है.
एनसीआरबी के आंकड़ों के आधार पर बात करें तो 2013 में हर दिन सड़क दुर्घटना में 377 लोगों की जाने गयीं और 1287 लोग घायल हुए. गौर करने वाली बात ये है कि ये आंकड़ा आज भी जस का तस है. इसके पीछे की वजह केवल स्वयं की सुरक्षा के प्रति लापरवाही भरा रवैया है.
भारत में नए दो पहिया वाहन के रजिस्ट्रेशन के लिए हेलमेट की रसीद दिखाना अनिवार्य है. इसका अर्थ ये है कि हेलमेट मजबूरी में ही सही लेना तो पड़ता है लेकिन उसे लगाने की ज़हमत नहीं उठाना चाहते. इसके लिए उनके पास अपने अपने कारण हैं.  इसका अर्थ ये नहीं है कि कोई भी वाहन सवार हेलमेट नहीं लगाता है, हाँ उनकी संख्या न लगाने वालों से कम है.
ऑस्ट्रेलिया दुनिया का सबसे पहला देश है जिसने 1989 में साइकिल पर भी हेलमेट लगाने के लिए क़ानून लागू किया. और सही भी है कि साइकिल वाले भी बेमौत सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं. हमारे देश में फिलहाल इस तरह का कोई कानून नहीं है.

समस्या का निदान सिर्फ जनता के अपनी और दूसरे की सुरक्षा के प्रति ज़िम्मेदारी के भाव को समझकर किया जा सकता है. हर बात के लिए सरकार या प्रशासन को दोषी नहीं माना जा सकता. देश का ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते ये हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम खुद भी सुरक्षित रहें और दूसरे को भी सुरक्षित रखें और हेलमेट या सीट बेल्ट सिर्फ आपकी सुरक्षा के लिए ही है. बाल बचाने या सरदर्द से अधिक जिंदगी बचाना ज़रूरी है.