Feb 5, 2012

मीडिया को हमेशा से ही लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है. बेशक आज किसी भी लोकतंत्र को आगे ले जाने में मीडिया बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है और ऐसा इसलिए की अधिकाधिक लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में " अपनी बात कहने की आजादी" जनमानस का एक मूलभूत अधिकार है. 
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है की मीडिया की शक्ति उभरते लोकतन्त्रों में भी जानी जाती है. पाकिस्तान में घटी ताजा घटनाएँ लोकतंत्र को प्रभावशाली बनाने में मीडिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती हैं.
हमारे हिंदुस्तान में भी लोकतंत्र आज स्थिर है तो केवल हमारी बेहद शक्तिशाली मीडिया, स्वतंत्र न्यायपालिका तथा निष्पक्ष चुनाव आयोग की वजह से. चुनाव के दौरान भी मीडिया मतदाताओ को जागरूक करने में एक अहम भूमिका अदा करती है. चुनाव में भागीदारी कर रहे प्रत्याशियों व चुनावी दलों की जानकारी देना, चुनावी दलों के नेता के भाषण को मुख्य रूप से दिखाना, या वाद-विवाद और चुनावी चर्चाओं के ज़रिये चुनावी दलों की रीति-नीति को सामने लाना आदि. 
लेकिन मीडिया चाहे देसी हो या विदेशी, की अनुकरणीय भूमिका का एक स्याह पहलू ये भी है जिस पर अति गंभीरता से विचार किया जाना आवश्यक है. स्वस्थ लोकतंत्र के निर्माण में ये पहलू लगातार पीछे धकेल रहा है. 
कभी कभी मीडिया द्वारा किसी पार्टी विशेष के बारे में लगातार जानकारी देना, पार्टी द्वारा बांटे जा रहे रुपयों या सामान के बारे में बताना आदि.
आज की सरल भाषा में इसे पेड न्यूज़ कहा जाता है.

साधारणतया चुनाव प्रत्याशी और चुनावी दल अपने चुनाव प्रचार पर पैसा पानी की तरह बहते हैं. इस समस्या के गुरुत्वाकर्षण की तीव्रता दिनोदिन  बढती ही जा रही है. आज चाहे वह राजनीतिक दल हों या या स्वयं राजनीतिज्ञ..सभी अपना वह महत्व, वह कीर्ति खो चुके हैं जो उन्हें लोगो से जोड़ता है. आज ईमानदार राजनीतिज्ञों को बढावा न देने की सिस्टम की आदत ने राजनीतिज्ञों के चरित्रनिर्माण में एक सूखा सा लाकर खड़ा कर दिया है.
आज चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मीडिया का पेड न्यूज़ के ज़रिये गलत इस्तेमाल वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है. आज के समय में लगातार बदती जा रही पेड न्यूज़ की प्रवत्ति, चुनाव प्रत्याशियों या उनकी समर्थकों को असम्वैधानिक तरीके से जमकर अपना प्रचार करने की खुली छूट देती है.
आज पेड न्यूज़ का चलन बढता ही जा रहा है. मुख्य रूप से इसलिए भी क्योंकि यह मीडिया के लिए एक रिसोर्स का काम करता है जिसे वह अपने को चमकाने में इस्तेमाल करता है.
वाकई आज हम सभी को एक ठोस उपाय ढूंढने की सख्त ज़रुरत है जिससे राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों के इस तरह के कृत्य पर अंकुश लगाया जा सके. जितने जल्दिये बदलाव होंगे, उतनी ही जल्दी एक स्वस्थ चुनावी माहौल और एक साफ-स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण होगा. 

Jan 23, 2012

आज के नौनिहालों  की जिंदगी सिर्फ सिमट गयी है ट्यूशन , एक्स्ट्रा क्लास्सेस आदि तक. बचपन न जाने कहाँ चला गया है आजकल के बच्चों का बस्ता उनकी वजन से भी ज्यादा भारी है और उनकी महत्वाकांक्षाएं  आसमान  से भी ऊँची. रही सही कसर उनके माँ बाप की अपेक्षाओं ने पूरी कर दी है.प्रतियोगिता की दौड़ में बस दौड़ते जा रहे हैं. नब्बे प्रतिशत से ऊपर नंबर भी चाहिए, ट्यूशन का काम भी करना है. हौबी क्लास्सेस  में भी अच्छा प्रदर्शन करना है, टर्म टेस्ट की तयारी भी करनी है और फिर स्कूल कॉम्पटीशन भी तो हैं , उसकी तैयारी.
इतना सब कुछ और उम्र मात्र ६-१० साल.
 आजकल के बच्चे हाईटेक होने के साथ साथ मानसिक रूप से भी जल्दी बड़े हो जाते हैं. बच्चों के साथ बच्चों जियाअ व्यव्हार उन्हें अखरता है. 
आखिर ऐसी कैसी महत्वाकांक्षाएं जो बच्चों से उनका बचपन ही छीन ले? जीवन के सभी रंगों में से सबसे अनमोल है बचपन.बुढ़ापे में जवानी के किस्से तो बहुत सुने होंगे पर बचपन कभी लौट कर नहीं आता.

Jan 22, 2012

सहसा एक विचार मन में उठा कि भारतवर्ष में आज कई तरह के स्कूल खोले जा रहे हैं, प्रोफेशनल स्कूल, फार्म स्कूल, स्मार्ट स्कूल, ईवनिंग स्कूल,  तो क्यों न एक नेतागिरी का स्कूल भी खोला जाये.
यह स्कूल होगा सबसे अलग . हाँ लेकिन प्रवेश पाने की योग्यता कुछ इस प्रकार होगी ..
अगर आप दबंग किस्म के इन्सान हैं, गुंडा गर्दी में माहिर हैं, झूठ बोलने में आपको महारत हासिल हो तथा आपका ज़मीर बिकाऊ हो तो यह स्कूल आपके लिए एकदम सही जगह है . आप राजनीति में एक ओहदे से सिर्फ  कुछ दूरी पर होंगे. आखिर आज के एक नेता में यही गुण तो होते हैं . और अगर आपने एक दो क़त्ल किये हैं तो वह आपकी विशेष योग्यता गिनी जाएगी .

किसी भी मंत्री के पुत्र को इस स्कूल में प्रवेश नहीं दिया जायेगा क्यूंकि उम्र चाहे जो भी हो वह पहले से ही महारथी  होगा. उसकी जगह कम से कम विद्यार्थियों में तो नहीं होनी चाहिए .हाँ एक शिक्षक के तौर पर उससे काम ज़रूर लिया जा सकता है .
पाठ्यक्रम में आपको सिखाया जायेगा कि किस तरह चुनाव के समय खोद खोद कर जान-पहचान निकाली जाती है और जीतने के बाद किसी भी तरह आपको याद दिलाने पर भी याद न आये. और आपको ये भी सिखाया जायेगा कि किस तरह वायदे करना और उन्हें भूल जाना. 
परीक्षा का यहाँ कोई ठौर-ठिकाना नहीं है. नेताओं ने भी भला कभी परीक्षा दी है. ये तो आम लोग होते हैं जो जीवन- यापन करने की जद्दोजहद में नित्य गुजर बसर करने कि परीक्षा देते हैं. 
कोर्स की समाप्ति पर आपको विशेष सीख के तौर पर कलमाड़ी साहब, लालू यादव जी और ए. राजा जैसे महान नेताओं की किताब भी दी जाएगी जिससे भ्रष्ट बनने की पूरी जानकारी मिल सके .
वाकई अपने आप मैं अनोखा ये स्कूल कम से कम हिंदुस्तान में तो खूब  चलेगा. वैसे भी यहाँ सभी नेता हैं. बस ओहदे तथा माथे पर एक ठप्पे की कमी है जिसे पूरा करने में ये स्कूल ज़रूर पूरी मदद करेगा.