Apr 29, 2013

साहूकारो के जाल से कैसे निकलेंगे?



काफी दिनों से शान्ति दीदी ने अपनी छोटी सी दुकान नहीं खोली थी। कारण जानने की इच्छी हुई। एक दिन जब उनकी दुकान खुली देखी तो मुझसे रहा नहीं गया और पूछ बैठी कि दूकान क्या क्यों बंद थी जवाब हिला देने वाला था  उन्होंने बताया कि उनकी दीदी के इलाज के लिए उनके पिता नेे अपनी जमीन को गिरवी रखकर दस हजार  रूपये का कर्ज लिया था। वो 22 हज़ार रूपये दे चुके हैं लेकिन अभी भी मूलधन बाकी है। साहूकार उन्हे कर्ज  चुकाने के लिए मानसिक प्रताड़ना भी देता है। पुलिस में शिकायत करने की बाबत पूछने पर उन्होंने कहा कि हम  गरीब लोग हैं पुलिस में शिकायत करेंगे तो भी क्या होगा? ये कहानी अकेली शान्ति के पिता की नहीं है, गाँवों में रहने वाले उन तमाम लोगों की है जो इन अवैध साहूकारों से कर्ज लेते हैं और चुकाते चुकाते उनकी उम्र बीत जाती है तब भी वह कर्जे़ के बोझ से मुक्त नहीं हो पाते। भारत में लगभग 83 क्षेत्रीय बैंके हैं और करीब 19 सरकारी बैंके हैं जिनकी कई हज़ार शाखाऐं हैं पर क्या कारण है कि किसान इन बैंकों से ऋण नहीं लेते? छोटे  काम करने वालों, श्रमिकों तथा छोटे किसानों को बैंकों से आसानी से ऋण नहीं मिल पाता जिस वजह से किसान इन अवैध सूदखोरों के चक्कर में फंस जाते हैं। कई बार तो कर्ज़ा लेने वाले को यह नहीं पता होता कि उसने कितनी बड़ी ब्याज पर यह कर्ज़ा लिया है। समय-समय पर इन कर्जों के न चुका पाने के कारण किसानों के आत्महत्या करने की खबरें आती रहती हैं।गाँवों के लोग कम शिक्षित होने के कारण तथा कागज़ी काम होने की वजह से सरकारी बैंकों से ऋण लेने में हिचकिचाते हैं। गाँवों के साहूकारों  से वही उधार बहुत जल्दी और आसान तरीके से मिल जाता है लेकिन इसके पीछे का खेल वो नहीं समझ पाते। अधिकतर साहूकार दिये हुए कर्ज़ पर चक्रवृद्धि ब्याज लगाते है। चक्रवृद्धि ब्याज वह ब्याज होता है जिसमें मूलधन में ब्याज को गुणाकर जो धन आता है उस पर ब्याज लगाया जाता है। किसान सालों  तक लिए हुए ऋण से कई गुना ज्यादा पैसा  चुकाते हैं लेकिन वे  केवल ब्याज ही अदा कर पाते है और उनका मूलधन  वापस नहीं हो पाता। पैसे न चुकाने की असमर्थता का फायदा उठाकर साहूकार या तो आये दिन उसका सामाजिक व मानसिक उत्पीड़न करते हैं या उसकी जमीन ले लेते हैं। मजबूरन उसे स्वयं की भूमि पर ही मजदूरी करनी पड़ती है और किसी भी किसान का खुद की जमीन पर मजदूरी करना लगभग वैसा ही है जैसे खुद के खड़े किये गये कारोबार में विवशता वश नौकरी करना| बात, फिर वहीं आ जाती है कि जानकारी का अभाव।भारत में साहूकारी अधिनियम के तहत व्यवस्था है कि साहूकार को अपना पंजीकरण कराना आवश्यक है और वह निर्धारित दर से अधिक ब्याज नहीं वसूल सकता। यदि कोई मजबूरीवश कर्ज़ न भी अदा कर पाये तो बिना प्रशासन की सहायता के उसकी वसूली भी नहीं की जा सकती लेकिन साहूकारों के दबंग और पुलिस के ढुलमुल रवैये के कारण ये अवैध रूप से कर वसूलने में सफल हो जाते हैं।दूसरी समस्या सरकारी बैंकों के  ऋण  वसूली तंत्र का  महाजनी व्यवस्था की तरह कार्य करना भी है।ऐसे में किसानों का  व्यवस्था पर से भरोसा उठ जाता है और वह साहूकारों के चंगुल में फँस जाता है। माइक्रोफाइनेंस कंपनियाँ एक विकल्प के रूप में उभरी जरूर लेकिन पनप पहीं पायीं। भारत सरकार ने सिडबी तथा लघु उद्योग विकास बैंक के माध्यम से छोटे-छोटे कर्ज़ देने के लिए माइक्रोफाइनेंस को प्रोत्साहित लेकिन व्वास्थागत खामियों और किसानों का भरोसा ना जीत पाने के कारण उत्तर भारत में ये प्रयोग सफल नहीं  हो पाया|सहकारी आंदोलन की उपज सहकारी बैंक अपनी अंतिम साँसें गिन रहे हैं जिनमें से अधिकतर या तो बंद हो चुके हैं या बंद होने की कगार पर हैं ऋण के लिए धन की कमी का सामना कर रहे हैं|देश के किसान अभी भी इंतज़ार में है कि जिस तरह कार और टीवी फ्रिज का आसानी से उपलब्ध है उन्हें अपनी खेती के लिए ऋण भी उतनी आसानी से मिल पाए|कोई सुन रहा है क्या
 गाँव कनेक्शन के 28 अप्रैल 2013 के अंक में प्रकाशित 

बदलता इंडिया



गाँवों में आजकल एक नजा़रा आम है। युवाओं के ग्रुप को फोन पर इंटरनेट पर नये नये एप्स डाउनलोड करते भी देखा जा सकता है और टांकिंग टॉम एप पर ठहाका लगाते भी देखा जा सकता है। 
समय बदला, देश बदला और विकास के मायने भी बदल गये। भारत गाँवों का देश है। देश में होने वाले किसी भी विकास की लहर गाँवों में भी पहुँचती है। अब स्मार्टफोन को ही ले लीजिए। आज गाँव का नज़ारा बदला हुआ है। हर हाथ में अब फोन के बजाय स्मार्टफोन हैं। चाहे वो गाने डाउनलोड करना हो या फेसबुक पर गाँव के बैकग्राउण्ड में खिचीं फोटो का अपडेट, आज के ग्रामीण युवा इस मामले में किसी से भी पीछे नहीं रहना चाहते। फेसबुक पर उनकी सक्रियता एक अच्छे बदलाव का संकेत देती है। स्मार्टफोन वे मोबाइल फोन होने हैं जिन पर बिना किसी सैटिंग को मंगाये इंटरनेट चल सकता है।
मैककिन्सी ऐंड कंपनी द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार 2015 तक भारत में इंटरनेट को प्रयोग करने वालों की संख्या लगभग 35 करोड़ से भी ज्यादा हो जायेगी। ये अमेरिका की वर्तमान जनसंख्या से भी अधिक है। इसमें सबसे बड़ा योगदान स्मार्टफोन का रहेगा। 
गूगल का एक सर्वे बताता है कि अभी भारत में स्मार्टफोन का प्रयोग करने वाली जनसंख्या अमेरिका के 24.5 करोड़ के मुकाबले आधी से भी कम है। अभी भारत के केवल आठ प्रतिशत घरों में कम्प्यूटर है। संभावना है कि 2015 तक 350 करोड़ इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में अधिकतर लोग मोबाइल के जरिये ही इंटरनेट का प्रयोग करेंगे। इस रिपोर्ट में महिलाओं की फेसबुक जैसा सोशल नेटवर्किंग साइट पर भागीदारी के बारे में भी बताया गया। अभी 29 प्रतिशत महिलाऐं फेसबुक का प्रयोग कर रही हैं जो आगे जाकर 50 प्रतिशत होने की संभावना है। 
इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन के अनुसार , भारत में कुल ग्रामीण जनसंख्या का केवल 2 प्रतिशत हिस्सा ही इंटरनेट को प्रयोग कर रहा है। अब चूंकि भारत में 60 प्रतिशत आबादी अब भी शहरों से दूर है तो अभी के लिए यक आंकड़ा बेहद कम है। ग्रामीण इलाकों के युवाओं को अभी भी इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए दूर जाना पड़ता है। ग्रामीण इलाकों में ब्रॉडबैंड कनेक्शन के लिए सरकार को पैसे खर्च करने होंगे तो ऐसे में फोन पर इंटरनेट एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। 
मैकिन्सी कंपनी के एक नये अध्ययन के अनुसार वर्ष 2015 तक भारत की जीडीपी यानि कि सकल घरेलू उत्पाद में 100 बिलियन डॉलर का योगदान इंटरनेट का होगा जो कि अभी के योगदान से लगभग तिगुना है। भारत में दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले अधिक इंटरनेट उपभोगकर्ता जुडेंगे और पूरी जनसंख्या का 28 प्रतिशत इंटरनेट को इस्तेमाल करेगा। यह चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा समूह होगा। पर ग्रामीण इलाकों की बात करें तो केवल 9 प्रतिशत जनसंख्या ही इसका लाभ उठा पायेगी। इससे गाँवों में करीब 22 मिलियन के रोज़गार का जन्म होगा। अभी तो केवल 60 लाख के आसपास है।  
सिस्को के मुताबिक वर्ष 2016 में पूरे विश्व में करीब 10 अरब मोबाइल फोन होंगे।इन्टरनेट ने मानव सभ्यता के विकास को एक नया आयाम दिया है। तकनीक संक्रामक होती है। किसी संक्रमण की तरह ही फैलती है और भारत में इन्टरनेट एक क्रांति की तरह आगे बढ़ रहा है। मोबाइल का बढ़ता प्रयोग इंटरनेट यूजर्स की संख्या को बढ़ाने में अपना योगदान दे रहा है। मोबाइल में इंटरनेट इस्तेमान करने वाले लोगाों में 20 से 29 वर्ष के युवा वर्ग हैं और सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इनकी सक्रियता भी लगातार बनी हुई है।  
ओवम नाम की एक संस्था ने स्मार्टफोन के द्वारा प्रयोग किये जा रहे एप्लीकेशन का अध्ययन किया। इस संस्था द्वारा दिये गये आंकड़े कहते हैं कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर मैसेज्रिग की वजह से मोबाइल द्वारा होने वाले एसएमएस में भी भारी कमी आई है। इस कारण मोबाइल कंपनियों को 13.9 अरब डॉलर को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा है। यह इंटरनेट कर बढ़ती शक्ति को द्योतक है। 
अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार यूनियन (आईटीयू) के आंकड़े कहते हैं कि बीते 4 वर्षों में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 77 करोड़ बढ़ी है। ट्विटर संदेश भेजने के एक नये माध्यम के रूप में उभर रहा है और फेसबुक के सदस्यों की संख्या में इजाफा हुआ है। मोबाइल ब्रॉडबैंड कनेक्शन 7 करोड़ से बढ़कर 67 करोड़ तह पहँुच गयी है। मैंकिसे के एक नये अध्ययन के अनुसार भारत में जीडीपी में इंटरनेट का बीते पाँच वर्षों में 5 प्रतिशत को योगदान रहा है जबकि ब्राजील, चीन जैसे देशों में यह केवल 3 प्रतिशत है। 

आईटीयू के आंकड़े ये भी कहते हैं कि विकसित देशों में हर तीसरा व्यक्ति इंटरनेट का प्रयोग कर रहा है वहीं भारत जैसे विकासशील देशों में 5 में से 4 व्यक्ति अब भी इंटरनेट की इस सुविधा सं दूर है। भारत में आर्थिक, सामाजिक असमानता के कारण डिजिटल डिवाइड की समस्या बेहद गंभीर हो जाती है। अभी भी यहाँ प्राथमिकता में रोटी, कपड़ा और मकान है। गाँवों में भी जीवन यापन करने के लिए व्यक्ति को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। जीवन स्तर को बेहतर करने के लिए अभी भी उनका सोच में अच्छा खाना और आर्थिक स्तर पर बेहतरी होना है। इंटरनेट को भी प्राथमिकता में लाना सरकार का काम है क्योंकि वैश्विक स्तर पर बराबरी के लिए मूलभूत सुविधाओं में इंटरनेट का होना भी अब जरूरी हो गया है।
ये तो रही आंकड़ों की बात, गाँवों में भी अब जब स्मार्टफोन आ ही गये हैं तो उनके इस्तेमाल के तरीके को जानने की भी जरूरत होती है। कहते हैं कि अच्छी शिक्षा किसी भी कार्य को बेहतरी से करने में सहायक होती है। भारत में जहाँ केवल अंग्रजी माध्यमों में पढ़ने वालों को ही अच्छी शिक्षा का प्रतीक माना जाता है वहाँ गाँवों के सरकारी स्कूल में पढ़े बच्चों को थोड़ा सा यह जानना जरूरी हो जाता है कि किसी तकनीक को प्रयोग किस तरह किया जाना चाहिए। फेसबुक पर केवल अपनी फोटो या फिर किसी और का स्टेटस शेयर कर देने से बात नहीं बनेगी। ये साइट्स केवल दोस्तों की संख्या बढ़ाने के लिए नहीं है बल्कि पूरे विश्व भर में कहीं भी किसी से भी आपके जुड़ने के लिए है जिससे आप कुछ नया देखें, सीखें। भारत के ग्रामीण इलाकों में स्मार्टफोन आज भी गाने या फिर नये नये एप्स डाउनलोड करने के लिए हैं। गूगल पर उपलब्ध जानकारी के अथाह संसार में अभी उन्हें गोते लगाना बाकी है। चूंकि गाँवों में खेती किसानी पर अधिक बल दिया जाता है तो किसान इंटरनेट पर खेती किसानी के नये नये तरीकोें से भी वाकिफ़ हो सकते है। अपनी समस्याऐं रख सकते हैं, उनके हल जान सकते हैं। किसान कॉल सेंटर एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरा है। इसी में इंटरनेट का आ जाना उनकी जानकारियों में और वृद्धि कर सकता है और वैसे भी इंटरनेट पर भाषा कोई समस्या रही नहीं। आप हिन्दी सहित कई क्षेत्रीय भाषाओं में अपनी समस्या को समाधान पा सकते हैं।
अब युवाओं की बात, आज पूरे विश्व में अंग्रजी को बोलबाला है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की इस भाषा को सीखने समझने के लिए इंटरनेट एक बेहतर विकल्प हो सकता है। आपको गाँवों से कहीं भी दूर जाने की जरूरत नहीं है। बस चाहिए केवल एक स्मार्टफोन और देश-दुनिया की जानकारी आपके पास होगी। इंटरनेट को तरक्की का एक ज़रिया बनाया जा सकता है। रोज़गार से सम्बन्धित ढ़ेरों जानकारियाँ  आपके लिए नये आयाम उपलब्ध कराती है। 
इंटरनेट तेज़ी से अपने पैर पसार रहा है। शिक्षा, अर्थव्यवस्था, राजनीति, विदेश से सम्बन्धित सभी जानकारी केवल एक क्लिक भर दूर है और स्मार्टफोन तो आपके पास है ही। 
गाँव कनेक्शन साप्ताहिक  के 21 अप्रैल 2013 के अंक में प्रकाशित