Oct 1, 2013

जीना इसी का नाम है


एक एक्सपीरियंस शेयर करती हूँ आपसे  मेरे सामने के घर की एक महिला ने साइकिल पर अपने लगभग दो साल के बच्चे के साथ जाते हुए एक आदमी को रोका और उसे एक जूते का सेट लाकर दिया। आदमी ने तुरन्त ही उस जूते को अपने बेटे को पहनाने की कोशिश की। जूते बड़े थेबच्चे का पैर छोटा, पर फिर भी उसने बहुत जतन से वो जूते अपने बच्चे को पहनाये। बच्चे को नई चीज पहनने की जल्दी थी तो थोड़ी  कोशिश वो खुद से भी करने लगा। इस पूरे वाकये को मैं देख रही थी पिता के चेहरे पर बच्चे की खुशी का रिफ्लेक्शन साफ देखा जा सकता था और बच्चा नये जूते पाकर भले बड़े ही सही इतना खुश था कि क्या कहने । अब आप कहेंगे कि भई ये तो आम बात है इसमें नया क्या है। नया ये था की मुझे जिन्दगी को देखने का एक अनोखा नजरिया मिला  हम समाज के किसी भी तबके से आयें पर हम अपने आत्मसम्मान को जरूर महत्व देते हैं पर यहाँ यह सोचना तो बनता है कि क्या गरीब लोगों का कोई आत्मसम्मान नहीं है आत्मसम्मान। सुनने में काफी भारी भरकम शब्द है, नहीं . आत्मसम्ममान का अर्थ होता है स्वयं का सम्मान करना। हर व्यक्ति अपना सम्मान सुरक्षित रखने की कोशिश करता है पर गरीबों को इसकी बलि देना पड़ जाती है। अब सवाल ये है कि गरीब लोग कौन होते हैंसरकार के मुताबिक गाँवों में 816 रूपये हर महीने से कम कमाने वाले लोग और शहर में 1000 रूपये से कम कमाने वाले लोग गरीबों की श्रेणी में आते हैं। भारत में प्लानिंग कमीशन के मुताबिक करीब बाईस  प्रतिशत जनता गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करती है और सबसे ज्यादा गरीब उत्तरप्रदेश में ही हैं। पूरी जनसंख्या का लगभग तीस प्रतिशत। गरीबी को हटाने के लिए सरकार हर साल बजट में करोड़ों रूपये गरीबों के लिए निकालती है,पर क्या कोई ऐसी योजना है जिनसे वो अपने सम्मान के साथ जीवन बिता सकें ,देखा न सवाल ने थोडा तो परेशान किया आपको अब हर बात के लिए सरकार की ओर क्या ताकना ये तो हम सबकी भी जिम्मेदारी भी बनती है .हमारे घरों में रोजमर्रा के काम करने लोगों को  हम तनख्वाह के साथ साथ कभी कभार उतरन भी दे दिया करते हैं और खुश होते हैं कि आज हमने एक नेक काम किया  पर क्या ये वाकई एक दान थाजनाब थोड़ा सोचिएयदि आपने उन्हें उस पुराने कपड़े की बजाय एक नया कपड़ा भले ही सस्ता खरीद कर दे दिया होता तो कितना अच्छा होता। वे अपने आपको कितना सम्मानित महसूस करते आखिर ये वो ही लोग हैं जो हमारे जीवन को आसान बनाते हैं चाहे वो आपका रिक्शावाला हो या बर्तन मांजने वाली बाई । जब आप ब्रांडेड जूतोंकपड़ोंपरफ्यूम और अपने प्रिय जनों के जन्मदिन पर हजारों रूपये यूँ ही उड़ा सकते हैं तो घर में काम करने वालों को उतरन ही क्यूँ। किसी गरीब को जाते हुए रोककर बस पुरानी चीजें ही क्यों देंउन्हें प्यार से बुलाकर अपने साथ एक वक्त का खाना भी खिलाया जा सकता है। आपने अक्सर देखा होगा कि अगर कोई गार्ड या पार्किंग वाला आपको आप ही की गलती पर कुछ कह दे तो आपके आत्मसम्मान को तुरंत ठेस पहुँच जाती है और आप ये बताने से नहीं चूकते कि आप क्या चीज हैं .याद आया न अभी आपने जल्दी ही ऐसी हरकत की थी जबकि वह बेचारा सिर्फ अपना काम ठीक से कर रहा होता है वहीं आप पुराना और आपके लिए बेकार वस्तु को किसी गरीब को देकर उसके आत्मसम्मान को और छोटा कर रहे होते हैं.नहीं भई नहींमैं आपको ज्ञान देने की कोशिश नहीं कर रही हँू मैं तो बस ये बता रही हूँ कि इंसान को सम्मान उसके इंसान होने के कारण मिलना चाहिए न की उसके अमीर या गरीब होने से.तो आज से एक कोशिश करते हैंकिसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार ,किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार क्यूंकि जीना इसी का नाम है