Jun 9, 2013

पनाह देने वाले गाँव बन गए अब "पर्यटन स्थल".

गाँव आधुनिकीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण अधिकतर जनसंख्या महानगर केन्द्रित हो गई है इसके साथ लगातार बढ़ते तनाव ने शहरों में एक तरह का ‘‘काउंटरअर्बनाइजेशन सिंड्रोम’’ यानि की शहरों से दूर जाने की एक मानसिकता भी विकसित की है। जिसका परिणाम शहर के लोगों में छुट्टियों में गाँव घूमने की एक ललक के रूप में सामने आ रहा है । गाँवों में रहनावहाँ के लोगों का रहन-सहनकृषि विधियों से अवगत होनाविविध संस्कृतियों का साक्षी बननाइन सबने मिलकर ग्रामीण पर्यटन का आकार ले लिया।भारत में कई ऐसे  पर्यटन स्थल हैं जो अनछुए हैं  जिनमें कुछ ऐसे गाँव हैं  जहाँ आप ग्रामीण परिवेश के सानिध्य में कला और प्राकृतिक सौन्दर्य का लुत्फ भी उठा सकते है। पर्यटन की द्रष्टि से इस क्षेत्र में अभी बहुत संभवानाएं हैं|कोई भी बदलाव अवसर चुनौतियों के साथ अवसर भी लाता है अगर शहरी करण बढ़ रहा है तो तस्वीर का दूसरा रुख ये भी है कि लोग अब छुटियाँ मनाने गाँव की ओर लौटना चाह रहे हैं पर क्या हमारे गाँव इस अवसर का लाभ उठाने के लिए तैयार हैं|आइये हम आपको बताते हैं कि इस गर्मी की छुट्टियों में कहाँ जाकर असली भारत को देख और समझ सकते हैं
भारत को हमेशा से ही गाँवों का देश कहा जाता रहा है। आज भारत की लगभग 74 प्रतिशत जनसंख्या देश के सात मिलियन गाँवों में रहती है। आजादी के बाद से धीमे धीमे इन गाँवों का स्वरूप भी बदलने लगा। शहरीकरण की छाप गाँवों पर भी पड़ी। गाँवों का रूप-स्वरूप बदलने लगा पर फिर भी नहीं बदला तो गाँव की वो सौंधी खुशबू जिसके तराने आज भी हमारा दिल गाया करता है
कलकत्ता में शान्तिनिकेतन गाँव के पास एक और गाँव है बल्लवपुर दांगा। शान्तिनिकेतन गाँव और इसी नाम से वहीं स्कूल रविन्द्र नाथ टैगोर ने स्थापित किया था। बल्लवपुर दांगा संथाल आदिवासी गाँव है जहाँ बंगाल की जड़ें हैं। यहाँ एक छोटी सा पक्षी विहार भी है। कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ ज़िले में कदम्बों की राजधानी हुआ करती थी जिसे आज बनवासी गाँव के नाम से जाना जाता है। इस गाँव में करीब 1500 शिल्पकार रहते हैं। लकड़ीचंदनजूतेरंगोली,कढ़ाई इनके जीवन यापन का ज़रिया है। गाँव की खूबसूरती में चार चाँद लगाती गुधापुरा नामक एक झील भी है। कला का उत्कृष्ट नमूना इस गाँव में देखने को मिलता है। अगर आप महल और उनकी कारीगरी देखने के शौकीन हैं तो चले जाइये जयपुर से बस 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित समोदे गाँव। शीशमहल की सुन्दरता बरबस ही मन मोह लेती है। मंदिरबागबावड़ीकार्पेट और ऊँट यहाँ के अभिन्न अंग तो हैं ही और अगर आप हिमालय की वादियों के किसी गाँव में छुट्टियों का लुत्फ लेना चाहते हैं तो नग्गर गाँव से बेहतर जगह नहीं हो सकती। यहाँ की खास बात यह भी है कि आप एक हिल स्टेशन अर्थात पहाड़ पर घूमने के साथ साथ गाँव की शान्ति का भी अनुभव कर पायेंगे। गुजरात के होडका गाँव की खास बात ये है कि यह गाँव 300 साल पहले हेलाऑपट्रा क्लॉन ने बसाया था। यहाँ की खास बात इसकी माटी में है। मिट्टी की छोटी छोटी झोंपडियाँ अनायास ही आकर्षित कर लेती हैं। मोटी मिट्टी की दीवारें गर्मी में ठंडक देती हैं और जाड़ों में गर्माहट। कुरूक्षेत्र में अर्जुन को उपदेशित गीता के सार को पूरी दुनियाँ में पूजा जाता है और यह अति पावन भूमि ज्योतिसर गाँव में है। यहाँ लगभग 5000 साल पुराना बरगद का वृक्ष है जो आज तक बिना झुके खड़ा है। दक्षिण भारत के केरल में एक गाँव है अरनमूला। खास बात यह है कि शीशे के बजाय यहाँ धातु के आईने बनते हैं और कहीं से भी वह शीशे के मुकाबले कम नहीं हैं। 100 फीट लम्बी साँप के आकार की नाव प्रतियोगिता का रोमांच शरीर के हर रोंये में सिरहन भर देता है। मध्यप्रदेश के दिल में एक ऐसा गाँव है जिसने रूडयार्ड किपलिंग को जंगलबुक लिखने के लिए प्रेरित कर दिया। चौगान। इस गाँव में लकड़ी से बने साजो सामान की सुन्दरता बस देखते ही बनती है। नेपुरालाचेन आदि और भी ऐसे ग्रामीण पर्यटन स्थल हैं जहाँ कलाप्राकृतिक सौन्दर्यविविध लोक कलाऐंसंस्कृतियों का बेमिसाल संगम है। इन गाँवों में लगने वाले मेलेबाजार इनकी लोकप्रियता में और इजा़फा कर देते हैं। अच्छी बात यह है कि पर्यटकों के  अलावा गाँव के लोग भी अपनी ग्रामीण विरासत को लोगों के  साथ बांटना चाह रहे हैं और  हर चीज के लिए सरकार की ओर नहीं देख रहे हैं तरह के प्रयोग से गाँव और वहाँ के निवासियों को पहचान के साथ  रोज़ी-रोटी का नया ज़रिया मिला है और गाँव को महसूस करने की चाह में आने वाले पर्यटकों से सरकार को राजस्व की प्राप्ति भी हो रही है। देसी ही नहींविदेशी पर्यटक भी अब इन गाँवों की तरफ रूख़ कर रहे हैं। ‘‘विलेज सफारी’’ इसका बेहतरीन उदाहरण है। विलेज सफारी आपको न केवल भारत के बेहतरीन गाँवों में ले जाता है बल्कि आपके रहने की व्यवस्था भी उसी परिवेश में करता है जिससे आप खुद को उसी गाँव का एक हिस्सा महसूस करें। इसके साथ साथ यह वहाँ के रहने वालों के जीवन में सामातिक और आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गाँवों में रोजगाार के नये रास्ते खुल रहे  हैं।  हर गाँव की अपनी एक कहानी। हर कहानी में कुछ नया। कुछ अद्भुत। तो फिर चलिए इस बार छुट्टियों में अपने देश के उस हिस्से को महसूस कर लिया जाय जो सबसे खास है। आखिर गाँवों में ही भारत का दिल बसता है।

Jun 3, 2013

वक़्त है खुद को पहचानने का

लाईफ कितनी हैपनिंग हो गयी है. हर आदमी बिजी  है .दिन में घंटे तो चौबीस ही होते हैं और उसी में टी टाइमब्रेक टाइमलंच टाइमडिनर टाइम इसके अलावा पार्टी टाइमरोमांस टाइमआफिस टाइम जैसी चीजें तो हैं ही । लाईफ की इतनी सारी चीजें टाईम से जुडी हुई हैं  और टाइम मैनेज करने के चक्कर में हम कितने घनचक्कर बन जाते हैं इसका पता हमें नहीं पड़ता,पर समय की इस कहानी का एक और मजेदार हिस्सा है हमारी प्रायोरिटी यानि  हम जो चीज करना चाहते हैं उसके लिए टाईम निकाल ही लेते हैं हम कितने भी व्यस्त क्यूँ न हों एफ बी पर स्टेट्स देते रहते हैं उन दोस्तों के साथ मेसेंजर पर भी जुड़े रहे हैं जिनसे हम बात करना चाहते हैं पर जिनसे बात नहीं करनी ,जिनसे मिलने का मन नहीं उनके लिए रेडीमेड रेमेडी टाईम नहीं है यार.इस टाईम मेनेजमेंट के खेल में कोई एक ऐसा भी होता है जो हमारे लिए सबसे इम्पोर्टेन्ट होता है लेकिन हम उसे  लगातार इग्नोर कर रहे होते हैं और वो कोई और नहीं बल्कि हम खुद होते हैं कभी आपने गौर किया कि हम  अपने आप को कितना टाईम दे रहे हैं. खुद से अकेले में कुछ देर बात करने के लिए. कुछ देर केवल अपने आप को समझने के लिए। टाईम की कहानी में यहीं से ट्विस्ट शुरू होता है. पढ़ाई हो या फिर नौकरीहर किसी को जल्दी है. पढ़ने वालों को जल्दी से पैसे कमाने की और नौकरी वालों को एक सुरक्षित और ऊँची पोस्ट पर पहुँचने की और जब ऐसा नहीं होता तो हम स्ट्रेस्ड हो जाते हैं.अपने आप से भागने लगते हैं ऐसी चीजों में समय ज्यादा देने लगते हैं जो वक्ती तौर पर सुकून तो देती हैं पर आपको धीरे धीरे खत्म कर रही होती हैं.मेरी एक मित्र काफी महत्वाकांक्षी किस्म की हैं। पढ़ाई में भी अच्छी थीं पर उन्होंने बिना अपनी क्षमताऐं जाने जल्दी से प्रसिद्धि पाने की चाह में एक टीवी चैनल  में नौकरी कर ली. कुछ दिन तो केवल जोश में ही निकल गये लेकिन कुछ दिन बाद उन्हें वहाँ ऊबन होने लगी। धीरे-धीरे काम प्रभावित होने लगा और खुद को प्रूव न कर पाने की सोच ने उनके दिमाग में गहरी जड़ें जमा लीं कि उन्होंने  अपना आत्मविश्वास खो दिया जिससे उनका करियर प्रभावित हुआ और वो डिप्रेशन का शिकार हो गयीं.असल में आपको आपके सिवा कोई और नहीं समझ सकता,पर अपने आप को समझने के लिए हमें अपने आप से बात करनी होगी. असल में हर इंसान अपनी क्षमताऐंखूबियाँकमियाँ अच्छे से समझता है .हमें पहले यह पता होना चाहिए कि हम जिंदगी से चाहते क्या हैं बगैर तैरना जाने आप तालाब में इस लिए कूद जायेंगे कि बाकी भी ऐसा ही कर रहे हैं तो आप निश्चित डूबेंगे ही हर इंसान अपने आप में यूनीक होता है तो दूसरों को की कॉपी क्या करना अपनी स्टाईल खुद बनाने का कोई पढ़ाई में अच्छा होता हैकोई खेल में तो कोई गीत संगीत मेंलेकिन ये पता कैसे पड़ेगा कि आप क्या कर सकते हैं इसके लिए किसी काउंसलर की जरुरत नहीं है बस थोडा समय अपने आप के लिए निकालिए अच्छा संगीत सुनिए अपनी हौबी को फिर से जिन्दा कीजिये जिसे आप कब का पीछे छोड़ आये हैं फिर देखिये आप अपने आप से कैसे बात कर पायेंगे तो जिन्दगी जीने के फलसफे थोड़ा चेंज कर लेते है. अब अपनी जिन्दगी को किस तरफ ले जाना हैकौन सा विषय पढ़ना हैक्या करियर चुनना हैजॉब में क्या बदलाव लाना हैखुद को दस साल बाद कहाँ देखना है,ये अब किसी से नहीं पूछना है बस टाईम की प्रायरिटी में अपने आपको भी जगह देनी है. यही वक्त है और वक्त सही भी है. इस लेख को पढ़ने  के लिए भी आपने टाईम  तो निकाल ही लिया न
 04.06.13 को आई नेक्स्ट के सम्पादकीय पृष्ठ पर  प्रकाशित.