Jun 14, 2014

एक दोस्त है मेरी. हर वक़्त चुप रहती है. ज्यादा किसी से बात नहीं करती. हँसी से कोसो दूर उसकी अपनी दुनियां है जिसमे केवल एक गहरी चुप्पी है. कई बार जानने कि कोशिश पर जवाब नहीं मिला. बहुत कुरेदने पर जब चुप्पी की वजह पता चली तो शर्मिंदगी और ग़ुस्से से भर गयी. शर्मिंदगी इसलिए कि हम आज भी ऐसे घिनोने समाज का हिस्सा हैं और ग़ुस्सा अपनी दोस्त पर कि आज तक वो इतना सब बर्दाश्त क्यों कर रही है. वजह कुछ यूँ थी.. मेरी मित्र २५ लोगों के एक परिवार मैं रहती है. उसका सगा चाचा बचपन से लेकर आज तक उसका शोषण करता आ रहा है. बचपन मैं कुछ ज्यादा हद तक, बड़े होने पर चूँकि उसके लिए समस्या हो सकती है इसलिए सिर्फ घूरने और छेडछाड तक सीमित है. और दोस्त इसलिए चुप है क्यूंकि उसकी बहिन बहुत छोटी है और वो उसे हर कीमत पर बचाना चाहती है. उसे डर है बता देने पर या तो परिवार वाले चुप रहने को कहेंगे या कहीं बाहर भेज देंगे. वो इंसान तो आपकी हरकतों से बाज आने से रहा तो कहीं उसकी बहिन भी इस नीचता का शिकार न हो जाए.
भारत देश में अभी भी बाल यौन शोषण या चाइल्ड एब्यूज ऐसी समस्या है जिसके बारे में लोग बात नहीं करते या करना नहीं चाहते . और ये समस्या हर वर्ग के घरो में है. देश ही नहीं विदेशों में बड़े से बड़े लोगों के नाम समय समय पर अखबारों में सामने आये हैं.
देश के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी थी जिसके अनुसार भारत में करीब 53.22 प्रतिशत बच्चे एक या एक से ज्यादा बार इसका शिकार हुए है. 21.90 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण और 50.76 प्रतिशत बच्चे यौन शोषण के अन्य प्रकारों के शिकार हुए. शर्मिंदा कर देने वाला सच ये भी है कि 50 प्रतिशत बच्चे अपनों के ही शिकार हुए. ज़्यादातर मामलों में पिता या सगे चाचा ताऊ या मामा ही दोषी थे. रिपोर्ट के ही मुताबिक अधिकतर बच्चों ने कभी अपना मुह नहीं खोला जैसा कि मेरी दोस्त ने भी किया. और ऐसा नहीं है कि सिर्फ लड़कियां इस समस्या की शिकार हैं , लड़के भी उतने ही पीड़ित हैं.
अब इसके ज़िम्मेदार कौन? सरकार, मंत्री, न्यायपालिका, पुलिस, समाज ? नहीं. ज़िम्मेदार हम. हम सब. सबसे पहले वो लोग जो अपनी घटिया मानसिकता और मानसिक बीमारी का शिकार इन बच्चों को बनाते हैं. दूसरे वो लोग जो अपने बच्चों पर भरोसा न करके उन्हें या तो डांट देते हैं या चुप रहने को कहते हैं. तीसरे वो लोग जो इसके खिलाफ सिर्फ इसलिए आवाज़ नहीं उठाते क्यूंकि समाज क्या कहेगा या फलां व्यक्ति उनका रिश्तेदार है या अपना है. समय समय पर टीवी और फिल्मों के ज़रिये इस समस्या के बारे में कहा गया, दिखाया गया पर समस्या आज भी जस की तस है. कम से कम अपनी दोस्त के बारे में जाने के बाद मैं ये कह सकती हूँ. हम दोहरे व्यक्तित्व वाले समाज में जीते हैं जहाँ एक तरह बच्चे को हर धर्म में भगवान का रूप बताया जाता है और उसी धर्म के अनुयायी अपने खुद के बच्चों को भी नहीं बक्शते.
पिछले कुछ दिनों से भारत के बच्चे बच्चे की जुबां पर है कि अच्छे दिन आने वाले हैं. भारत का हर एक नागरिक अपने अच्छे दिनों के ख्वाब देख रहा है. अब इनके भी अच्छे दिनों की बारी आनी चाहिए जिससे किसी भी बच्चे का कोई बीता कल उसे न ही डराए न ही चुप रहने पर मजबूर करे.जो लोग दोषी हैं उनकी सजा भी आपको तय करनी होगी. जो आपके साथ हुआ, या आपके बच्चों के साथ हो रहा है वो आगे किसी के साथ न हो या आपके बच्चा इस सदमे से उबार जाए इसकी भी कोशिश आपको ही करनी होगी. ज़्यादातर घरों में बच्चे से खुलकर बात नहीं की जाती न ही उसकी बातों को ज्यादा महत्व दिया जाता है इसलिए बच्चा बेख़ौफ़ आपको अपने साथ हुई ज्यादती के बारे में बता सके, ऐसा माहौल भी आपको ही बनाना होगा जिससे किसी भी मासूम को खुद से आँखें चुराकर न जीना पड़े. खुलकर बोलने से ही बात बन पाएगी. आप भी बोलिए और अपने बच्चों को भी बोलने का मौका दीजिये. अपनी उस जैसी हर दोस्त से भी मैं कहूँगी वक़्त आने का इंतजार मत कीजिये. यही समय सही है. किसी और का घोला हुआ ज़हर क्यों पीना. बात करिए. चुप रहने से कुछ नहीं होगा. बात करना तो बनता है अब. जिंदगी आपकी तो बेख़ौफ़ जीने का हक भी सिर्फ आपका है.