May 7, 2015

हमें शिद्दत से है सिविक सेंस की दरकार


दुनियां में पैदा होने वाला हर बच्चा पांच सेंस के साथ पैदा होता है. धीरे धीरे बड़े होने पर एक सेंस उसे खुद से सीखना होता है. इस सेंस को हम सिविक सेंस कहते है. सिविक सेंस का अर्थ उन अलिखित नियमों से है जो हमारे और दूसरे की सहूलियत के लिए बनाये जाते हैं. कुछ बातें हमने चलते फिरते पढ़ी होंगी जैसे कृपया यहाँ गन्दा न करें, यहाँ गाडी खड़ी करना मना है, कृपया प्याऊ से पानी बर्बाद न करें, इस दीवार पर पेशाब न करें, यहाँ थूकना मना है, कृपया बाएं हाथ पर चलें, रेड लाइट पर रुकें, कृपया बायीं ओर चलें, चलती सड़क पर न थूकें, यहाँ विज्ञापन लगाना मना है, ज़ेब्रा क्रासिंग पर रुकें, फूल तोडना मना है, नो पार्किंग, सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान न करें, कृपया पेट्रोल पंप पर मोबाइल बंद कर लें... जिन्हें हम गाहे-बगाहे यहाँ वहां पढ़ते रहते हैं. ये सारी सिविक सेंस के अंतर्गत आती हैं. इनमे हमे ज़्यादातर चीज़ों के लिए हमें मना किया जाता है कि ऐसा न करें पर क्यूँ? हमारे ख़ुद को जवाब कुछ इस तरह होते हैं कि अगर हम ऐसा करेंगे भी तो कौन हमें रोकेगा और फिर हम इतनी सारी बातें क्यूँ माने, ये सब तो लोग लिखते ही हैं, अरे ठीक है जो मन आये करो, इतना कौन सोचे, ठीक है हो गया हो गया देखेंगे आगे. ऐसा ही कुछ, है न. या तो हम लोग इन नियमों की अनदेखी कर देते हैं या हम लोगों को इन्हें जानबूझकर तोड़ने में बड़ा मज़ा आता है. इसके पीछे की वजह क्या हो सकती है? आपने कभी सोचा है कि हम लोगों के लिए इतने निर्देश क्यूँ लिखे रहते हैं और क्यों सिविक सेंस जैसी आम चीज़ के लिए भी हम लोगों को बताना पड़ता है.
कभी आपने सोचा की आखिर हमारे देश में सिविक सेन्स लोगों की प्राथमिकता में क्यों नहीं है.बढ़ती जनसँख्या शहरों पर बोझ डाल रही है. इस वक़्त भारत रूरल-अर्बन डिवाइड की समस्या से जूझ रहा है. जो ग्रामीण हैं वो इन सब चीज़ों से अनजान हैं और शहर में रहने वाले लोग इन निर्देशों को अनदेखा करते हुए निकल जाते हैं क्यूंकि उन्हें यहाँ रहते समय हो गया और समय के साथ चीज़ों की अहमियत कम हो जाती है. जो कस्बाई लोग हैं वो जानते हैं कि उन्हें शहर एक या दो दिन के लिए आना है तो वो इन निर्देशों की गंभीरता को नहीं समझते. अपनी सहूलियत का अधिक ख्याल करते हुए लोग कार में से सड़क पर पानी की बोतल, चिप्स के खाली पैकेट और गाड़ी चलाते वक़्त अचानक से गाड़ी का दायाँ दरवाज़ा खोलकर पान की लम्बी पीक बाहर निकालते हैं और सड़क को गन्दा करते हैं या ज़्यादातर लोग ख़ासकर औरतें चलती बस में से बाहर उल्टी कर देते हैं. क़ायदे से वो एक पोलिथीन अपने साथ रख सकते हैं कि अगर उन्हें उल्टी आये तो वो उसका इस्तेमाल करें और बाहर निकल कर उसे कूड़ेदान में फ़ेंक दें लेकिन ऐसा होता नहीं है. रेलवे स्टेशन पर साफ़-साफ़ शब्दों में लिखा रहता है कि यहाँ गंदगी न करें लेकिन लोग चाय के कप, बोतल लोग यूँ ही पटरी पर फेंक देते हैं. हद तब हो जाती है जब छोटे छोटे बच्चों की माएँ अपने बच्चों को वहीँ शौच करवाती हैं या उनके नैपकिन्स वहीँ डाल देती हैं. लोग इस बात से अनभिज्ञ बने रहते हैं कि इस तरह खुले में गंदगी करने से उनके स्वास्थ्य पर ही उल्टा असर पड़ेगा. मन का करना हमेशा अच्छा होता है लेकिन नियमों का पालन भी ज़रूरी होता है खासकर तब जब बात सिविक सेंस की हो. आप किसी गंदगी करेंगे या ग़लत जगह गाड़ी खड़ी करेंगे तो हो सकता है उस दिन आपको सहूलियत हो जाये लेकिन उसके बाद आप उम्मीद नहीं कर सकते कि आपको साफ़ जगह मिलेगी या फिर आप किसी और की ग़लती की वजह से जाम में नहीं फसेंगे. जाम से ख्याल आया शहरों में जाम लगने का सबसे बड़ा कारण गाडी पार्किंग में न खड़ा कर के रोड पर ही आड़ा तिरछा खड़ा कर देना या फिर दूसरे से आगे निकलने की जल्दी में आते हुए ट्रैफिक  की दिशा में गाडी घुसा देना जिससे ट्रैफिक की जिस दिशा में जाम नहीं लगा वहां भी जाम लग जाता है .जरा सोचिये अगर हम थोडा देर इन्तजार कर लेते तो शायद जाम उतना लम्बा नहीं होता जितना किसी एक की गलती से हो गया.
सिविक सेन्स एक ऐसी चीज है जिसे कानून बना कर हमारी आदत में शामिल नहीं किया जा सकता वह भी ऐसे देश में तो बिलकुल भी नहीं जहाँ आधी से ज्यादा जनसँख्या निरक्षर हो वहां हर काम सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता .सिविक सेन्स तो लोगों को जागरूक बना कर ही किया जा सकता है.अगर हमें इस बात का एहसास हो जाए कि इसमें ही हम सबका भला है तो लोग खुद बा खुद वो नियम मानने लग जायेंगे जिसमें सबका भला है.आप भी सोच रहे होंगे कि ये होगा कैसे.गुड क्वेशन अरे भाई जो भी गलती करे उसे प्यार से समझाओ कि ये शहर ये दुनिया आपकी ही है अगर आप अपने आस पास के परिवेश को साफ़ सुथरा नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा.हाँ इस काम में मेहनत भी लगेगी और समय भी फिर आदतें बदलते ,बदलते ही बदलती हैं.सोशल मीडिया का सहारा लीजिये अपने आस पास अगर कोई ऐसा कर रहा है उसकी तस्वीर खींच कर सोशल मीडिया पर अपलोड कर दीजिये. फिर ,फिर क्या सोच क्या रहे हैं लग जाइए काम पर अगर एक दिन में कोई एक आदमी आपके कारण सिविक सेन्स की यूटीलटी समझ रहा है तो मान लीजिये कि इस देश को बदलने में कुछ हिस्सा आपका भी है .



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