May 16, 2013

दिन बीत गया, रात आ चली

कभी सोचा नहीं था कि कविता भी लिखूंगी . आज लिखी है . पढ़िए और अपने विचार ज़रूर बताइयेगा . 
















दिन बीत गया 

रात आ चली 
तुम और मैं भी तो कभी 
ऐसी ही थे 
तुम दिन के जितनी उजली 
और मैं स्याह 
रात और दिन 
कभी नहीं मिलेंगे 

जानती थी  मैं

कभी तुमसे कहा था तो

तुम हंसी पडी
पागल हो तुम
यही कहा  था तुमने
ये पगली  आज भी दिन के उस उजले हिस्से के इंतज़ार में है
लेकिन
रात की रेखा दिन से कभी मिली है क्या
देर में समझ पायी थी 
पर दिन तो ढलेगा
इस चाह में
कि रात उसकी अपनी होगी
पर
रात और दिन
कभी नहीं मिलेंगे
जानती हूँ मैं .................................

1 comment: