Jul 26, 2015

मदद की एक अपील.. आपसे

एक अपील , आपसे .. जी हाँ आपसे ही. अपील वो नहीं जो आप सोच रहे हैं.. वही घर, वही परिवार की बंदिशें, वही पुराने प्यार का दर्द और आने वाले जीवनसाथी की चाह में बुनी हुई चुनरी की ख्वाहिशें.. वो सब नहीं.. बिलकुल नहीं.
अपील एक लड़की की जिसने अभी अपने पंख सिर्फ फड़फड़ाए हैं, उड़ान नहीं भरी. उससे पहले सोचा आपसे मदद की अपील करूँ. केवल कुछ मिनट का वक़्त देकर मुझे पढ़ लीजिये.

बात कुछ यूँ है कि मुझे डर लगना शुरू हो गया है. बहुत डर जाती हूँ. अक्सर इस डर की वजह से ना घर से बाहर निकलती हूँ ना ही दोस्त बनाती हूँ. अजीब सा डर है. आगे बढ़ने की हिम्मत भी देता है और रास्ते का रोड़ा भी बन जाता है. हूँ तो एक आम लड़की लेकिन सपने बहुत बड़ा नाम कमाने के हैं. पता चला कि एक आम लड़की जब आगे बढ़ने के लिए कदम उठाती है तो ये समाज उसके चरित्र पर बिना काम के खाली बैठे और दूसरों की सफ़लता से शरीर की भीतरी कोशिकाओं तक जले भुने बैठे लोगों की दी हुई कीचड़ की मोटी मोटी गोलियां दागने को तैयार रहता है. समाज बनता किससे है? हम लोगों से ही. मज़ा आता है कहने वालों को भी और सुनने वालों को भी और इस बात को आग की तरह फैला देने का ज़िम्मा कन्धों पर उठाये लोगों को भी. अब किसी ने कुछ कहा है तो कुछ सच्चाई तो होगी ही.. भले ही उस सच्चाई को ठीक से देखा ही न गया हो या सिर्फ उतना देखा हो जितना अफ़वाह के बाज़ार में अपनी धाक बनाने के लिए ज़रूरी है. अब हूँ तो लड़की ही.. कितनी भी हिम्मत दिखाऊ पर कहीं न कहीं उस चोट के दर्द से टूट भी तो जाउंगी. मानसिक तनाव से भी गुज़रना पड़ेगा. हो सकता है कि रो रोकर कई रातें भी काली हों, हो सकता है कि काम करना ही बंद कर दूँ या हो सकता है कि इतनी बिगड़ जाऊं कि सम्हालने की स्थिति ही न बचे या फिर डर डर के जीने की आदत पड़ जाए. जब काम के सिलसिले में कहीं किसी से मिलने की बात हो तो दिल धक् धक् करे कि कहीं अभी ये उस अफवाहों के बाज़ार में मेरी इज्ज़त की नुमाइश देखने तो नहीं गया था ..किसी ने इससे कुछ कहा तो नहीं होगा? बस यहीं पर आगे बढ़ने के रास्ते में एक लेकिन और एक काश ने मेरा हाथ थाम लिया. “लेकिन” मुझे खुद को हर पल लोगों को सफ़ाई देने पर मजबूर करता है और “काश” उन लम्हों को कोसता है जब चेहरे पर मुस्कराहट और हाथ में खंजर लेकर बैठे लोगों से बात की.
कभी कभी ये डर हिम्मत बंधाता है. फिर लगता है कि मुझे फर्क नहीं पड़ता. लोगों का तो काम ही है बोलना. कुछ तो बोलेंगे ही लेकिन खुद से झूठ भी कैसे बोलूं. फ़र्क तो पड़ता है.. दिल तो दुखता ही है.. तकलीफ़ भी बहुत होती है पर आगे बढ़ने का जज़्बा फिर मुझे ले उठ खड़ा होता है. मैं फिर आगे बढ़ तो जाती हूँ लेकिन उसी डर के साथ कि कौन कब क्या बोल देगा मैं नहीं जानती. आगे बढ़ने के लिए लोगों से मिलना भी पड़ेगा. बड़ा नाम बनाने के लिए सामाजिक दायरा भी बड़ा करना पड़ेगा, और समस्या ये है कि मैं एक सीधी सी आम लड़की हूँ जिसको मुंह में गाली रखकर चलना भी नहीं आता और नाम भी कमाना है.
आप सभी लोगों से मदद तो चाहिए ही लेकिन एक सवाल है मेरा कि क्या आप किसी भी लड़की के बारे में ऐसी बातें सुनते वक़्त एक छोटा सा जवाब नहीं दे सकते कि पहले उससे मिल लो फिर मुझे बताना. किसी को बिना जाने समझे इस तरह की बात बोलना ठीक नहीं है वो भी हमारे जैसे देश में जहाँ लड़कियों का आगे बढ़ना कितना मुश्किल है. शादी की बेड़ियाँ बचपन से ही उसके पावों में होती हैं जो वक़्त के साथ उसके पावों को कसती जाती हैं और एक वक़्त वो आता है जब एक जगह रुक जाने के अलावा कुछ नहीं बचता.









मेरी बस थोड़ी मदद कीजिये. मैं आम हूँ, ख़ास भी बन जाउंगी, तब आपको मुझ पर ज़रूर गर्व होगा. लेकिन इस रास्ते को केवल उतना मुश्किल बनाइये जितना आपके परिवार की महिलाएं झेल सकें. मैं आगे बढ़ना तो नहीं छोड़ सकती लेकिन एक रिश्ते के नाते मदद माँग सकती हूँ, रिश्ता खून का नहीं, इंसानियत का. आगे बढूँ तो हिम्मत बढाइये, अगर ग़लती करूँ तो ज़रूर बताइए लेकिन उस ग़लती को अपनी जलन को निकालने का बहाना मत बनाइये. मेरी प्रेरणा वो लड़कियां ज़रूर हैं जो इन सब बातों से ऊपर उठ कर आगे निकलीं लेकिन क्या हर लड़की को दिल में कुछ काले दिन और दर्द लेकर ही आगे बढ़ना ज़रूरी है. नहीं न. मैं बस इतना चाहती हूँ कि जब मैं कभी अपना जिक्र करूँ तो आपके दिए घावों के बदले आपकी की हुई इस छोटी से मदद को याद करूँ.

पहली और आख़िरी अपील है आपसे. निराश मत करियेगा. मुझे समय देने के लिए धन्यवाद.  

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