जैसे
जैसे फागुन की गुलाबी बयार अंगड़ाई लेने लगती है वैसे वैसे मेरा मन अपने प्यार से
लिपटने को मचल उठता है. यूँ तो साल भर मैं सिर्फ सबके ज़ेहन में होती हूँ लेकिन
मेरे प्रीतम के आते ही मेरा रूप रंग संवारकर मेरा नया जन्म होता है. मेरा होना
सिर्फ तुमसे ही है. मुझे मेरे हमेशा हमेशा के प्यार होली से मिलने का सोच कर
गुदगुदी होती है और मैं भी तड़प उठती हूँ होली से मिलने के लिए. प्रिय होली,
तुम्हारे जाने के बाद जब डब्बों में टूटे टुकड़ों में रह जाती हूँ तब कितना कुछ
सोचती हूँ. तुम साल में सिर्फ एक बार आते हो और किस्मत देखो मेरी याद भी लोगों को
तभी आती है. अच्छा है ..वैसे भी प्रेम के इस त्यौहार में हमे अपने प्यार को महसूस
करने का मौका जो मिल जाता है. आते तो तुम प्यार लेकर हो लेकिन साल भर की तन्हाई और
इंतज़ार देकर चले जाते हो. लेकिन मैं तुमसे तब भी नाराज़ नहीं होती क्यूंकि जब तुम्हारे
बारे में सोचती हूँ तो एक नयी ऊर्जा के अनुभव के साथ मेरा जी करता है कि हर बरस
तुमसे यूँ मिलने के लिए तड़प बनी रहे. इसमें जो मज़ा है वो शायद साथ रहने में न हो.
अरे हाँ सुनो.. इस बार मेरा तोहफा लाना मत भूलना. तुम्हें याद है न पिछली बार तुम
भूल गए थे. तोहफ़े में जो ढेर कहानियां तुम मेरे लिए लाते हो , उन अनमोल कहानियों
को समेत कर में हर रोज़ तुममे ही जीती हूँ. याद है जब हम उस सुहानी शाम को नदी के
किनारे तेज़ हवाओं में हम साथ थे.. मैं तो टुकड़ों में बिखर ही जाती अगर तुमने अपने
गीले रंगों से मुझे भिगोया न होता. तब एक कहानी तुमने खुद मुझे सुनाई थी.. तुमने
मुझे बताया था कि तुम्हारे आने पर एक लड़ने ने राह चलते दूसरे लड़के को रंग में
सराबोर किया था.. कितना खिलखिला कर हँसा था वो पर उसे क्या पता था कि उसकी वो खिलखिलाहट उसके और उसके परिवार के लिए हमेशा का
दर्द बन जाएगी. वो दूसरा लड़का सिर्फ अपना मजाक बनने की वजह से कितना आहत हुआ था
काश वो पहला लड़का समझ सकता. अपने साथ लाठी लिए आये कुछ लोगों के साथ उसने अपने ऊपर
रंग गिराने की सज़ा हमेशा के लिए उसका पैर तोड़कर दी. मेरे रोंयें रोंयें काँप गए थे
ये सुनकर और याद है वो वाली कहानी जिसमे सिर्फ रंग डालने की वजह से पूरा शहर दंगों
से कराह उठा था. मुझे तो बस इतना समझ आया था कि इंसान ने इंसान पर रंग डाला था
लेकिन तुमने ही मुझे बताया था कि किसी हिन्दू ने किसी मुसलमान पर रंग डाला था. इस
बात पर में तुमसे नाराज़ भी हुई थी क्यूंकि तुमने मुझे कभी नहीं बताया कि ये हिन्दू
या मुसलमान क्या होता है. तुम हमेशा कहते रहे कि अपने को हिन्दू समझो पर कैसे,
मैंने तो खुद को ख़ुशी ओर मिठास का प्रतीक समझा था. मैं तो बस यही समझती हूँ कि मेरा आना लोगों को
ख़ुशी देता है. पर एक बात बताओ क्या इस प्रेम के त्यौहार को भी लोग अपने ग़ुस्से से
छोटा समझते हैं. क्या लोग प्रेम को भी छोटे-बड़े, मज़हबी और गैर मज़हबी, ऊँचे-नीच,
अमीर-गरीब जैसे तराजुओं में तोलते हैं. तुमसे तो मुझे बस यूँ ही प्यार हो गया था न
और प्यार तो किसी रूप में हो, बस प्यार ही रहता है. वहां इन सब का क्या काम. खैर
छोडो मैं भी क्या लेकर बैठ गयी. सही कहते हो तुम, “जब भी तुम बोलना शुरू करती हो
तुम्हारा मुंह बंद ही नहीं होता. टेपरिकॉर्डर की तरह बस बजती चली जाती हो.” पर
तुम्हारे इस तरह मुझे छेड़ने में जो प्यार होता है न बस में उसी को तुम्हारे चेहरे
पर देखकर मुझे ऐसा लगता है जैसे दुनिया भर के सारे सुख मेरी झोली में आ गिरे हों
जैसे. सुनो इस बार वो वाली कहानी सुनाना न जब मेरे जैसी एक प्रेम दीवानी को उसके
प्यार से मिलाया था तुमने. तुम्हारे रंगों ने न जाने क्या असर किया उस दीवानी पर ,
बस वो उसकी होकर रह गयी. शायद रंगों में छुपी उसके प्यार की छुअन का था वो असर. वो
कैसे शरमाई होगी न. खुद से ही लजाई होगी. उसे देखकर तुम्हें मेरी याद आई होगी ना.
आई ही होगी. कहो न कहो पर साल भर तुम भी मुझसे मिलने के लिए ऐसे ही मचलते हो न.
अच्छा सुनो इस बार पड़ोस वाली रेहाना आंटी भी आयीं थी मुझे सँवारने के लिए. पदमा
आंटी ने उनकी ऐसी आवभगत की कि पूछो मत. वो कह रहीं थीं कि अब वक़्त बदल रहा है. अब
सब एक जैसा सोचने लगे हैं. कोई अब भेदभाव नहीं करता. ये तो कुछ ऊंची कुर्सी वालों
की देन है. तुम्हारे आने पर जब कोई ऐसी ख़ुशियाँ मनाता है तो मेरा मन करता है उसके
मुंह में घुलकर उसकी स्वादेन्द्रियों को ऐसे मीठे स्वाद का अनुभव कराऊँ कि वो
मिठास साल भर के लिए बनी रहे. पता है इस बार मैंने यही सोचा है हमारे लिए. तुम
प्यार की गुलाबी फुहारें बरसाना और मैं अपनी मिठास से इस प्यार को दुगना कर दूंगी.
तुम्हारे आने पर सब और सिर्फ प्रेम ही प्रेम हो. न ही कोई झगडे न ही कोई बुरा
माने. और ये मैं करूँ भी क्यूँ न तुमसे प्यार जो है मुझे. तुम्हें जाने देने का
दिल नहीं करता लेकिन तुम जाओगे वापस आने के लिए, अपने साथ प्रेम की ढेरों कहानियां
लिए और हर साल की तरह तुम्हारी गुझिया तुम्हें हर घर की रसोई में तुम्हारा इंतज़ार
करते हुए ही मिलेगी.
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