एक
गूंगे ने कहा कि मुझे गूंगा रहने दो.. अब आप कहेंगे कि गूंगे ने कैसे कह दिया तो
जी बात ये है कि बोलने वाले इतना ज्यादा बोलते हैं कि गूंगे को आखिरकार कहना पड़ा
कि मैं गूंगा ठीक हूँ..
हुआ
कुछ यूँ एक दिन गूंगा अपनी रह चला जा रहा था, रास्ते में उसे एक नेता मिले .. वो
चौंका, आप कैसे? आप तो इस दुनियां से कबके विदा हो गए? वो नेता बोले, ए गूंगे, तुम
विपक्ष के नज़र आते हो तभी मुझे देखकर खुश नहीं हो. किस धर्म के हो? जाति क्या है
तुम्हारी? रिजर्वेशन से पढ़े हो या फिर कोई और आरक्षण की मांग के सिलसिले में चले
जा रहे हो? गूंगे का सर चकराया, बोला, मैं कहाँ कुछ करूँगा नेताजी, वो तो दो दिन
हो गए रोटी खाए, पेट भरने जुगाड़ करने जा रहा हूँ. नेताजी थोडा और गुर्र्राए..
जुगाड़? अब समझ आया कि तुम जैसे लोगों ने ही इस देश का ये हाल कर रखा है. जुगाड़ से
काम चलाते हो. मेहनत तो करना ही नहीं चाहते, हमें देखो, हम तुम्हारी तरह की छोटी
मोटी जुगाड़ लगाते तो तुम्हारी तरह ही पानी पीकर पेट पर हाथ फेर कर सो जाते. तुम
जैसे लोगों की वजह से ये देश आज तक पिछड़ा हुआ है.. इस देश का उद्धार केवल तभी होगा
जब तुम हमारे साथ जुड़कर जुगाड़ लगाओगे, हम सबको हाथ में हाथ डालकर चलने की ज़रुरत
है.. नेताजी बोलते ही जा रहे थे.. गूंगे को भूख लगी थी .. क्या करता, दबे पांव
वहां से निकला और तेज़ी से भागने लगा.. भागते भागते उसने पीछे देखा, ठहाके के साथ
वो नेता हस रहा है, पर उनका चेहरा अलग सा है. उनके पैरों के पास एक मुखौटा पड़ा है..
कुछ समझा नहीं ..सोचा शायद उसकी किस्मत पर हँस रहा होगा. थोडा आगे निकल कर उसने
चैन की सांस ली.. थोडा रुका और फिर रोटी की तलाश में निकल पड़ा.. एक मोटे ताज़े,
हट्टे कट्टे आदमी ने उसका रास्ता रोका.. पूछा रोटी खाओगे ? गूंगे को बस मुंह मांगी
मुराद मिल गयी.. उसके कहा कहाँ है रोटी? मुझे बहुत ज़ोरों की भूख लगी है.. मुझे
रोटी दे दो.. उस आदमी ने कहा ..रोटी तक का रास्ता तेरे ही पास है. बस तू पहचान
नहीं पा रहा.. गूंगे ने सर खुजलाया, पूछा कहाँ है रोटी... उस आदमी ने कहा कि आँखें
बंद करके अपने ईष्ट को याद कर बस. गूंगे ने किया लेकिन रोटी नहीं आई. उस आदमी ने
कहा कि लगता है कि तेरा ईष्ट तुझसे नाराज़ है.. तेरे पापों की वजह से आज तू भूखा
मरने पर मजबूर है. गूंगे ने पैर उस आदमी के पैर पकडे. कहा, मैं माफ़ी मांगता हूँ..
क्या करूँ अपने ईष्ट को मानने के लिए जिससे वो मुझे रोटी दे दे.. आदमी बोला, कुछ
नहीं.. बस जो तेरी श्रद्धा हो उतना चढ़ावा
मुझे दे दे.. मैं तेरे इष्ट को दे दूंगा और तेरी समस्याओं का हल हो जायेगा, गूंगे
ने कहा मेरे पास कुछ नहीं है महाराज.. नरक
की आग में जलेगा तू.. आदमी चिल्लाया, गूंगा डर के भागा.. भूखे पेट भागते नहीं बन
रहा था. बेदम होकर वहीँ पड़ गया .. खुद से जूझता गूंगा उठा और जैसे तैसे घर पहुंचा..
इस उम्मीद में कि बीवी कहीं न कहीं से रोटी शायद लायी हो ..सकुचाते हुए पूछा ..
रोटी मिल जाएगी क्या खाने को? बीवी पैर पटकते और दांत पीसते हुए बोली कि कौन सी
रोटी खिलाऊ तुम्हें? वो जो नयी सरकार के साथ आने वाली थी अभी तक आई नहीं या वो
रोटी जो पिछली सरकार सपने में मुझे पकड़ा गयी थी तुम्हें खिलाने के लिए. गूंगा
शर्मिंदा हो गया. सोचा रहा था कि उसने पूछा ही क्यूँ. आखिर बीवी भी तो भूखी होगी.
गूंगे को कुछ न सूझा बस वो लगा रोने. रोता रहा , सिर्फ रोता रहा , खूब रोया, बीवी
को देख कर रोया, उभरी पसलियों के ढांचे हो गए अपने बच्चों को देख कर रोया. रात भर
रोया.
सुबह
हुई तो नाम का गूंगा अब सच में गूंगा हो गया. उसने कुछ भी कहना छोड़ दिया था, हमेशा
के लिए. एक जगह बैठा रहता. बीवी ने सोचा उसका ताना कहीं इसकी जान न ले ले.. माफ़ी
दर माफ़ी का दौर चला पर गूंगा टस से मस न हुआ. बीवी, बच्चे जो कुछ खाने को लाते
थोडा बहुत खिला देते. यही गूंगे के प्राण को रोके हुए था. धीरे धीरे ऐसे लगा जैसे
कि कोई समाधिस्त बाबा बैठा हो.
संयोग
से वो हट्टा कट्टा आदमी वहां से गुज़रा, उसे देख कर बस चरणों में पड़ गया.. बाबा तुम
कहाँ थे, कब से ढूंढ रहा हूँ, गूंगा अब सच में गूंगा था तो न बोला. आसपास गुज़रते
लोगों को समझते देर न लगी कि कोई महान बाबा यहाँ आकर बसे हैं. पाखंड ने आकार लेना
शुरू कर दिया. गूंगा कुछ न बोला. अब रोटी की कोई कमी न थी. उसके आगे खाने का ढेर
लगा रहता.
एक
दिन गूंगे ने देखा कि राह में मिला वो आदमी और मुखौटा लगाये वो नेता पैसों और
सामान का लेन देन कर रहे हैं. गूंगे ने सोचा कि बोलूं कि आखिर तमाशा क्या लगा रखा है,
जमे हुए होठ की पपड़ी को गीला करके जीभ को जगाकर बोलने जा ही रहा था कि रुका, फिर सोचा
कि जिस रोटी के लिए दर दर भटका वो यहीं मेरे सामने है.. बोला तो शायद इससे हाथ धोना पड़े और गूंगा फिर से गूंगा बन गया.अपने मन में बोला .. मैं गूंगा ही ठीक हूँ.
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