भारत सरकार ने यहाँ की
आवाम को डिजिटल इंडिया का सपना दिखाया है. डिजिटल इंडिया प्रोग्राम के नौ स्तम्भ
रखे गए हैं ब्रॉडबैंड हाईवे, फोन तक सबकी पहुँच, जनता के लिए इन्टरनेट प्रोग्राम,
इ-गवर्नेंस, इ-क्रांति, सभी तक सूचना का प्रसार, इलेक्ट्रॉनिक सामान का, सूचना तकनीक
के क्षेत्र में नौकरियां, आरंभिक फसल प्रोग्राम| इसके अलावा सरकारी विभागों में
सभी रिकार्ड्स के साथ साथ रिपोर्ट्स भी ऑनलाइन ही भेजी जाएँगी. इस प्रोग्राम के
तहत आप डिजी लाकर का इस्तेमाल करके अपने दस्तावेज़ सुरक्षित कर सकते हैं, मोबाइल पर
ही अधिक से अधिक सरकारी सुविधाओं का प्रयोग कर सकते हैं मसलन बैंक के कार्य, जन्म
मृत्यु प्रमाण पत्र, बिल आदि. व्यापार के क्षेत्र में इ-कॉमर्स मददगार होगी. डिजिटल
इंडिया के तहत जिस क्षेत्र के बारे में बात करना सबसे ज़रूरी है वह है शिक्षा का
क्षेत्र. इस प्रोग्राम के अंतर्गत भारत के सभी स्कूलों को ब्रॉडबैंड से जोड़ा जाना
है. हर स्कूल के अन्दर वाई-फाई, डिजिटल रूप से साक्षरता प्रोग्राम, बड़े पैमाने पर
ऑनलाइन कोर्सेज का विकास आदि स्तर पर कार्य किया जाना है. पंचायत स्तर तक इन्टरनेट
की सुविधा की उपलब्धता, ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल एजुकेशन आदि कस्बाई और
ग्रामीण छात्रों के लिए कंप्यूटर की शिक्षा को सुलभ बना देगा. इसके साथ साथ इन
इलाकों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा, योग्य शिक्षकों की समस्या से भी निबटने में इस
प्रोग्राम की मदद से सहायता प्राप्त होगी. कहना न होगा कि यदि इस तरह की शिक्षा
प्रणाली का विकास करने में भारत सफ़ल रहा तो विकसित देशों की श्रेणी में आने के लिए
हम एक बड़ी सीढ़ी चढ़ जायेंगे. ये होना इसलिए भी ज़रूरी है क्यूंकि भारत युवा देश है
और युवाओं को एक सही दिशा और देश दुनिया से जुडाव उनके लिए संभावनाओं के नए आयामों
को खोल देगा. धीरे धीरे ही सही लेकिन हम बदलावों के साक्षी बन रहे हैं. अभी तक सवा
अरब लोगों में केवल 19 प्रतिशत लोग ही इन्टरनेट का प्रयोग कर रहे हैं लेकिन ये
रफ़्तार तेज़ी से बढ़ रही है. मोबाइल पर इन्टरनेट का प्रयोग करने वालों की संख्या में
इजाफा हुआ है. इंटरनेट एंड मोबाईल एसोसिएशन ऑफ़ इण्डिया की नयी रिपोर्ट के मुताबिक
क्षेत्रीय भाषाओँ के प्रयोगकर्ता सैंतालीस प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं जिनकी
संख्या संख्या साल 2015 के अंत तक 127 मिलीयन हो
जाने की उम्मीद है | स्मार्टफ़ोन
की खपत भी भारत में बढ़ी है ऐसे में डिजिटल इंडिया प्रोग्राम उम्मीद जगाता है कि
शिक्षा का पुराना स्वरुप बदलकर इन्टरनेट आधारित हो जायेगा. प्राइमरी स्तर पर
स्मार्ट क्लासेज का चलन बच्चों को केवल किताबी ही नहीं बल्कि प्रयोगात्मक शिक्षा
की और ले जायेगा, बच्चों में प्रारंभ से ही वैज्ञानिकता का विकास होगा. लेकिन इस
सपने के आगे चुनौतियों का बड़ा पहाड़ खड़ा है. आज भी दूर दराज़ के गाँव और कस्बों के
स्कूल कंप्यूटर से दूर हैं. यह हाल कमोबेश हर उस
छात्र का है जिसने गाँव या कस्बे के स्कूल से पढाई अवश्य की है लेकिन कंप्यूटर
ज्ञान नगण्य है. ज़्यादातर गाँव और कस्बों में स्कूलों में या तो कंप्यूटर नहीं
होता है उन्हें पढ़ाने वालों की कमी होती है. ऐसे में छात्र इससे वंचित रह जाते
हैं. अधिकांश युवाओं के लिए मोबाइल चला लेना भर ही डिजिटल होने की परिभाषा है. अंग्रेजी
पढ़ा लिखा समाज तो बिना किसी समस्या के इस योजना का लाभ ले लेगा, समस्या ग़रीबी रेखा
से नीचे जीवन यापन करने वाले और आदिवासी क्षेत्र के लोगों की है जिनके लिए आज भी
अच्छा रहन सहन और सामाजिक स्तर दूर की कौड़ी है. उनका ध्यान केवल परिवार के पेट
पालने पर है. इंडियन एक्सप्रेस अख़बार के मुताबिक भारत में दस में से सात घर
ग्रामीण हैं जो 200 रूपए रोज़ कम पर जीवन यापन कर रहे हैं. आदिवासी क्षेत्रों में
अभी भी जागरूकता की कमी के कारण गरीबी और अशिक्षा में ही लोग जीवन जी रहे हैं. ऐसे
में डिजिटल इंडिया प्रोग्राम का सभी नागरिकों को साथ लेकर चलने वाली योजना खटाई
में पड़ सकती है. देश पहले ही रूरल अर्बन डिवाइड की समस्या से जूझ रहा है ऐसे में
डिजिटल इंडिया प्रोग्राम उम्मीद ज़रूर बंधाता है लेकिन उससे पहले देश में पहले से
मौजूद समस्याओं के पहलुओं पर गौर करना ज़रूरी हो जाता है. सबसे पहले गाँवों और
आदिवासी जनों को मुख्यधारा से जोड़ा जाना अति आवश्यक है और ये भी ज़रूरी है कि हर
व्यक्ति की एक निश्चित आय हो जो उसके परिवार के पालन और उसके बच्चों की शिक्षा के
लिए पर्याप्त हो. तभी हर युवा सही मायने में आगे बढ़ पायेगा और उसके लिए संभावनाओं के
क्षेत्रों में इज़ाफा होगा केवल देश में ही नहीं विदेशों में भी लेकिन ये केवल
ख़्वाब हैं जिनकी बुनियाद को पक्का किया जाना बाकी है. असल इंडिया डिजिटल तब होगा
जब धरती चीर कर अन्न उगाने वाले हाथ माउस भी उतनी ही सहजता से चला पायें.
Aug 22, 2015
Aug 6, 2015
केवल शिक्षा की तरफ ही कदम आगे बढ़ें न कि गर्त में धकेलते किसी पाखंड की तरफ.
अभी कुछ दिन पहले वैज्ञानिक सोच रखने वाले पूर्व
राष्ट्रपति कलाम साहब के निधन पर पूरा देश रोया लेकिन उनके तरह वैज्ञानिक सोच लेकर
आचरण करने को अभी हम अपना ही नहीं कर पाए. सोशल मीडिया और टीवी पर हमने कई बार
देखा होगा जैसे इस फ़ोटो को शेयर करें और पायें असीम कृपा तुरंत. फलां भगवान् जी
दिलाएंगे आपको वीज़ा. बस एक लॉकेट भर दूर है आपकी किस्मत. अल्लाह लॉकेट को पहनिए,
किस्मत आपके कदम चूमेगी. “होली वाटर” की एक बोतल घर लाइए और ईसामसीह की कृपा से
अपना घर भर दीजिये. एक तरफ जहाँ इन्टरनेट से दुनियां जहान से हम लोग जुड़ रहे हैं
वहीँ इसी इन्टरनेट से अन्धविश्वास की गली को चौड़ा किया जा रहा है. सांप सपेरों की
धरती कहे जाने वाले देश में माउस से खेलने वाले युवाओं से उम्मीद बंधी थी कि अब अंधविश्वासों को काबू किया जा सकेगा लेकिन
इसी माउस की क्लिक से पाखंड को बढ़ावा मिल रहा है. कई सालों से हम धर्म के नाम पर पैसा
कमाने और नफ़रत फैलाने वालों को देखते और सुनते आ रहे हैं और कई ऐसे गुनहगारों को
जेल के पीछे भी देखा है. ज्यादा दूर जाने की ज़रुरत नहीं है. आसाराम बापू का प्रकरण
खूब चर्चा में रहा था. केवल उन पर ही नहीं बल्कि उनके बेटे पर भी यौन उत्पीडन के
आरोप लगे थे. उससे पहले नित्यानंद स्वामी का ऐसा ही प्रकरण सामने आया था. निर्मल
बाबा के दरबार और समागम में समोसा और गोलगप्पे खा लेना ही मानव की समस्याओं का
उपाय है. दक्षिण के मंदिरों में धन के भंडार भरे हैं. सत्य साईं बाबा के देहावसान
के बाद इसका खुलासा भी हुआ था. खुद को राधे माँ कहने वाली एक स्त्री पर दहेज़ उत्पीडन का आरोप लगा है. स्वयं को कबीर का
अवतार बताने वाले रामपाल इन सबसे एक कदम आगे थे. रामपाल के ऊपर ज़मीन पर अवैध कब्ज़े
का आरोप लगा था. उनका आश्रम हर तरह की सुख सुविधाओं से परिपूर्ण था और उन्होंने
सशस्त्र बल भी अपनी सुरक्षा के लिए तैनात कर रखा था और वो भी बहुत बड़ी संख्या में.
ये केवल बड़े कुछ नाम हैं जो चर्चा में रहे. ऐसे ही मुस्लिम समुदाय में कुछ मौलवी,
पीर, फ़कीर जिन्न भागने के नाम पर औरतों के बाल खींच खींच कर पाखंड का प्रदर्शन
करते नज़र आते हैं. 5000 करोड़ की संपत्ति के मालिक डॉ. पॉल दिनाकरण का कहना है कि
स्वयं ईसामसीह ने उन्हें शक्तियां प्रदान कीं. बाकी अख़बारों में तो हम गाहे बगाहे
छोटे मोटे बाबाओं, मौलवियों के बारे में पढ़ते ही रहते हैं. अब भारत के साक्षरों की
बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 74 प्रतिशत लोग साक्षर हैं और इन
धर्म कारोबारियों के व्यापार के फलने फूलने में ज़्यादातर इन्हीं लोगों का अधिक
योगदान रहता है. जेबों में रखे पैसे का उपयोग इनके द्वारा बताये गए उपाय की फीस या
फिर “सेवा” देने में किया जाता है. अपने रोज़ के काम हों या व्यापार के या फिर घर
की सुख शांति के उपाय हों या घर में किसी की शादी, ये सब काम इन्हीं लोगों से पूछ
पूछ कर किये जाते हैं और भगवान के नाम पर डराने वाले लोगों को मानने लोगों के लिए
ये केवल कुछ रुपये हैं लेकिन यही कुछ रुपये बहुत लोगों के मिलाकर इतने भर हो जाते
हैं कि पाखंड का एक शामियाना स्थापित किया जा सके और बस इनकी दुकान चल निकलती है.
अब वो बात जो शायद आपको थोड़ी कडवी लगे. ग़लती इन लोगों
की जितनी है उससे ज्यादा ग़लती इस देश के नागरिकों की यानि आपकी है. अभी भी देश
धर्मगुरुओं के भरोसे चल रहा है. हम विकसित देशों में आने की बात तो करते हैं लेकिन
आज भी घर से निकलने से पहले चौघडी या दिन का विचार करते हैं. यदि भारत युवा देश है
तो इन युवा आँखों में स्वयं और देश की तरक्की का सपना तैरना चाहिए न कि किसी गोली,
ताबीज, भस्म या तस्वीर को लेकर हद पागलपन. सड़क के किनारे लगे तम्बू में अपने दुखों
का इलाज़ ढूंढते इस युवा भारत को शायद ये पता नहीं कि यदि केवल 10 रुपये में मिलने
वाली भस्म हर मर्ज़ का इलाज़ होती तो ये तम्बू लगाने वाला सबसे पहले अपने लिए एक घर
और उसमे सुख सुविधाओं की व्यवस्था करता. उसके पास आपसे ज्यादा दुःख है. इस देश को
विकास की ओर केवल वैज्ञानिक सोच ही लेकर जा सकती है और इस सोच को अपनाने के लिए
सबसे पहले अंधविश्वासों से बाहर आना होगा और ये सुनिश्चित करना होगा कि केवल
शिक्षा की तरफ ही कदम आगे बढ़ें न कि गर्त में धकेलते किसी पाखंड की तरफ.
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